पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२८५

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मिभन्दू । [५० 1११ | ए अन्य में महाराणा जगनिं ६ः अतिरिन, नत्र लिखित महापुर्षों के भी माम माये:उदातचन्द, प्रताप, जाफर भान, मोर मान माना। | दुलपति गृय संसाधर ने अपने एन्दी में अतिरिः निम्न- लिपित पियों के भी एन्द उदाष्ट्र में रहे:-- यशपन्त सिंह ( फुट द्धन्द पयं भाषा भूप्से ), सेनापति, केपदास, पलभद्र, भगवन्त सिंह, गंग, सिद्धारी लाल, मन्द चाळ, बदन, मिति, सुसवैच, चातुर, सरति मिन्न, नीलपंद्र, मरन, रामपा, मलिम, पा, दास, धारी, एप्प दंडी, देव, कालिदास, दिनेश, पीटल इम, अनीस, कादराम, चिन्तामांग, पुझी, Eथ, गैप, राय, नेहा, मुषारक, रहीम, मतिराम, रस मान, निरमल, निहाल, निपट निरंजन, मदन, माफ, राधाष्ट्रष्य और श। इनमें से भगवन्त सिद्ध, धैरी, प्य इंडी, प, निरमले और राधा कृष्ण के अतिरिक्त शैप सब कृपां के नाम इव सिह सरोज में पाये जाते हैं । इस प्रन्थ में इन फचिप के नाम मा जाने से इतना पश्चय हा गया पि इन टैग नै इचय १७९२ के पूर्व या तब तक कविता की थी। शिवसिंहसराज में से कुछ कवियों है जन्मकाल संवत् १७९२ के पीछे लियै गयै ६, से इस प्रन्थ में इनके नाम आ जाने से यह निश्चय हा गया कि उन के जन्मकाल इस समय से पूर्व के ६ । पुराने संग्री से इतना घदुत बड़ी उप- कर जाता है कि एक ते पुरानै कविपी के नाम हिंसर ही जाते, हैं, दूसरे उन के समय निरूप में कुछ भी हता है। से इस प्रकार विचार करने से कालिदास का इजारा बड़ा ही प्रशंसनीय