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मिश्रबंधु

२०० मिश्रबंधु-विनोंद सं० १९५० -- उदाहरण- (विश्व-विलास) कलित कलिंदी कूल कुंजन कंदबन की, अंबन की लतिका लुनाई छाह बट की; दारुन तपन ताप ग्रीपम की भीषम में, बैठे तहाँ पानंद अनूप छवि नट की। राधे मुख-इंदु पै विलोकि स्वेद बिंदु प्यारो, करत समीर धीर लैकै पीत पट की। काहू दल बीज कढ़े तरुन मरीचि तहाँ, लटक छबीलो छाँह छावत मुकुट की। नाम-(३४६८) चंद्रकला बाई, दी। समय-सं० १९५० ग्रंथ-(१) करुणाशतक, (२) रामचरित्र, (३) पदवी- प्रकाश, (४) महोत्सव-प्रकाश, (५) पत्रों की प्राचुर्य से समस्या-पू विवरण- यह कविराज गुलाबसिंहजी की दासी-पुत्री कविता अच्छी करती हैं। उदाहरण- सागर धरम को उजागर प्रवीन महा, परम उदार मन जन सुख टारनो गुन रिझवार कवि कोविंद निहालकर, बैरी मद गार उपकार उर धारनो । चंद्रकला कहै रनधीर पर पीरटार, जस बिसतार कर जग सुख सारनो मारवाड़ - नाथ सरदारसिंह सील-सिंधु, श्रानंद को कंद दीन दारिद बिदारनो । ग-पूर्ति ।

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