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मिश्रबंधु

सं० १९५७ पूर्व नूतन २४३ पड़ी, तदनंतर उर्दू, हिंदी और अँगरेज़ी एफ ० ए० तक पास. की, और संस्कृत तथा बँगला में भी अभ्यास किया । आपने कायस्थ- पाठशाला इलाहाबाद, गसस्कूल इलाहाबाद, छतरपुर स्कूल और हिंदू-कॉलेजिएट स्कूल में शिक्षक का काम किया। नागरी-प्रचा- रिणी सभा के कोप-विभाग में भी इन्होंने कुछ दिन काम किया । गया में लघमी पत्रिका के संपादक रहे । आप भापा गद्य तथा पत्र के लेखक और कवि थें । हिंदी के बड़े प्रेमी तथा हित-चिंतक थे। हमारे केवल एक कार्ड भेजने पर आपने स्वरचित ५ पुस्तकें भेजीं, और भापके पास जो हिंदी-साहित्य-इतिहास-विषयक बहुत-सा मसाला जमा था, उसके देने का वचन दिया, तथा और कई उचित परामर्श भी दिए । हम आपके हिंदी-प्रेम तथा उत्साह की मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हैं। आपकी रचित, अनुवादित तथा संपादित पुस्तकें ये हैं- (१) भक्ति-भवानी (पद्य), आदर्श हिंदू-रमणी (गद्य), (३) धर्म और विज्ञान (अनुवाद), (४) वीर बालक (पद्य ), (५) वीर क्षत्रानी, (६) रामचरणांकमाला, (७) चीर प्रताप काव्य, (८) हिम्मतबहादुर-विरदावली (संपादित), (१) राजविलास (संपादित)। (१०) ठाकुर कवि की जीवनी, (११) आनंद-धन, हंसराज, पोहकर और अक्षर अनन्य की जीवनी, (१२) तुलसी-सतसई का पद्य-बद्ध अनुवाद, (१३) भाल रामायण । 'रूस जापान पर क्यों विजयी हुमा'-नामक ग्रंथ पर आपको १००) पुरस्कार मिला । आपने रामचंद्रिका और विहारी- सतसई का संपादन किया, तथा टीका भी रची, और भी कई टीकाएँ तथा मथ आपने बनाए । आप हिंदू-युनिवर्सिटी में हिंदी के प्रोफेसर रहे । आपने हिंदी-ग्रंथ-प्रकाशन तथा टीकाएँ रचने में बहुत काम किया । थोड़े दिन हुए आपका स्वर्गवास हो गया। आपकी कविता के उदाहरण में 'वीर प्रताप से' कुछ अंश यहाँ . उद्दत