पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ४.pdf/४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
४०
४०
मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद विवरण-यह राजपूताने में दादूदयाल के शिष्य रज्जवदास के शिष्य थे। नाम-(३३६) सुंदर । ग्रंथ-द्वादश-मासा-वर्णन । विवरण-श्रीयुत भालेरावजी का कथन है कि श्राप ग्वालियर- निवासी तथा बादशाह शाहजहाँ के समकालीन थे, और उल ग्रंथ ( २४ छंद) उन्हें प्राप्त हुआ है । काव्य उच्च कोटि का कहा जाता है। नाम-(३१३ ) अक्खा, प्रास जेतलपुर (अहमदाबाद) प्रांत गुजरात। रचना-काल-सं० १७०५। थ--( १ ) अक्खेगीता, सं० १७०५, (२) पंचीकरण, (३) ब्रह्मतीला; (४) अनुभवबिंदु, (५) चित्त-विचार-संवाद तथा कुछ हिंदी-कविताएँ । विवरण--आप जाति के सुनार थे । कहा जाता है, इनके कई कुटुंबी जव काल के मुख में पड़ गए, तब इन्होंने वैराग्य धारण करके जयपुर की ओर गुरु-दीक्षा ली। इसके पश्चात् आप काशी को गए, और वहाँ रहकर आपने महात्मा ब्रह्मानंदजी से उपनिषद् और बेद- शास्त्रों का अध्ययन किया। इन्हीं की श्रेणी के एक और कवि प्रीतम नाम के गुजरात में हो गए हैं। महाशय भालेराव-लिखित आपका. संक्षिप्त चरित्र अब 'संत-चरित्र-माला' के नाम से, पुस्तक के रूप में, छप चुका है। इनकी कविता 'अक्खानी वाणी'-शीर्षक में साहित्य- वर्धक मंडल से प्रकाशित हो चुकी है । आपकी कविता सात्त्विक हुआ करती थी । यह महात्मा कवि प्रेमानंद के समकालीन थे। कविता छंदोभंग-युक्त साधारण है