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मिश्रबंधु

सं० १९७६ उत्तर नूतन नाम---( ४२६४ ) सूर्यकांत त्रिपाठी, 'निराला', ग्राम गाढ़ा- कोला, जिला उन्नाव (संयुक्त प्रांत)। जन्म-काल---सं० १९५५ । कविता-काल-सं० १९७६ । ग्रंथ-(१) रवींद्र-कविता-कानन, (२) शकुंतला का कथानक, (३) महाराणा प्रताप, (४) भीष्मपितामह, (५) प्रह्लाद, (६) हिंदी-बँगला-शिक्षा, (४) परिवाजक स्वामी विवेकानंद (अनु- वाद), (८) रामकृष्ण-बचनामृत, (अनुवाद, चार भाग), (६) वात्सायन, काम-सूत्र (अनुवाद), (१०) अनामिका (पद्य), (११) लिली (= कहानियों का संग्रह), (१२) रेखा (खंडयः काव्य), (१३) अप्सरा (उपन्यास), (१४) परिमल (काव्य- मंथ), (१५) अलका (उपन्यास), (१६) निरुपमा (उप- न्यास), (१७) प्रबंध-पद्म (निबंध-संग्रह) विवरण---श्राप पं० रामसहायजी त्रिपाठी के पुत्र हैं और जन्म- स्थान महिपादल-राज्य ( मेदिनीपुर, बंगाल) है। अापकी शिक्षा राजा सतीप्रसाद गर्ग बहादुर द्वारा बंगाल ही में हुई । कुछ समय तक श्रीरामकृष्ण मिशन-श्रत श्राश्रम के हिंदी सुख-पन्न समन्वय' के श्राप संपादक भी रहे हैं। अब तक आपने लग भग ३०० कविताएँ रची हैं । ऊपर दिए हुए आपके ग्रंथों में से नं० २, ६ और १२ अभी अमुद्रित हैं। यह महाशय एक उच्च कोटि के छायावादी कवि हैं। गद्य-लेखक भो बहुत ही अच्छे हैं। आपकी रचनाओं में दार्श- निकता एवं आध्यात्मिकता का प्राचुर्य है। कुछ सूझी सिद्धांतों का भी समावेश अापने किया है। मात्रा और वर्णवाले छंदों में इन्होंने स्वतंत्रता उत्पन्न की है। वर्ण-छंदों का माध्यम-सा निकालकर निम्नांकित जुही की कली के समान कविताएँ आपने प्राचुर्य से लिखी हैं। इनसे रंगमंच की भाषण कला को नवीन ज्योति प्राप्त