मिश्रबंधु-विनोद । मर रहे हैं पतिंगे जल जलकर; इसी ग़म में चिरास जलता है । यो तो पहलू ' में तुम्हारा तीर मेरा दिल भी है दोनो का मिल-जुल के रहना सहल भी मुश्किल भी है कुंच करने को अभी गो है ज़माना बाकी, बँध रहा है ' मगर असबाब सफर के पहले। नाम-(४३२५) ब्रजभूषणं गोस्वामी (सनाढ्य), दतिया । जन्म-काल-सं० १६१४ । कविता-काल-सं० १९८० उदाहरण- 'दामिनी की छु ति है नहीं ये दिव्य दीप्तिमान, देती है दिखाई छबि राधिका ललाम की काकली नहीं है कमनीय यह कोकिला की, बजती है बंशी ये ब्रजेश अभिराम की। वर्षा की बनाई नहीं बन में लुनाई है ये, शोभा है अनूप यह वृंदावन-धाम की; घिरि-विरि घूमैं नहीं, नभ में ये श्याम घन, फिरि है श्रवाई ब्रज माँहि धनश्याम की। नाम-(४३२६) भगवतप्रसाद शुक्ला जन्म-काल-सं० १४१५।
- ग्रंथ-(१) भारत-प्रेमी, (२) स्वराज्य-सोपान, (३).अर्थ-
शास्त्र, (४.) प्राकृतिक भूगोल, (२) भारतोद्यान, (६) चरित्र: चित्रण, (७) कृष्णाकुमारी, (८) श्रीपाटलेश्वर-वर्णन, (6) भारतीय अर्थ-शास्त्र। विवरण --यह छिदवाड़ा मध्यप्रांत-निवासी कान्यकुब्ज ब्राह्मण पंदित गयाप्रसाद शुक्ल के पुत्र हैं।