पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ४.pdf/५४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
५४९
५४९
मिश्रबंधु

-२४४ मिनबंधु विनोद सं० १९८७ । करते घृणा . उदाहरण- बिछाया कैसा माया-जाल । फंसकर जिससे छुट्टी पाना अतिशय कठिन त्रिकाल । सूत्रपात से ही इसके कुछ शंकित था मैं बाल; किंतु देखकर विश्व-व्यापिनी विभुता हूँ बेहाल । छोटे - बड़े, पढ़े - अनपढ़, सत - असत, रंक - भूपाल: एक तंतु भी तोड़ न पाए, श्रमित गए सब हाल । जाननेवाले इसकी कुटिला चाल पर अज्ञानी उनसे रखते ईष महा विकराल । रज्जु विशाल व्याल-सा इसका हृदय रहा है साल; 'श्रीकर' वही मुक्त हो सकता, जिस पर ईश दयाल'। नाम-(४३४२) नंदकिशोरलाल 'किशोर' ग्राम छतनेश्वर, जिला दरभंगा। जन्म-काल-सं० १९५८ रचना-काल-सं० १९८१ ग्रंथ -(१) कुसुम-कलिका, (२) महात्मा विदुर ( नाटक ), (३) बाल-बोध रामायण, ४) आरोग्य और उसके साधन, (१) मुक्ति-धारा। विवरण-आप कर्ण कायस्थ हैं । आपके पिता का नाम मुंशी मनमोहनलाल है। हिंदी, उर्दू, फारसी, संस्कृत के अतिरिक्त आपने बँगला-मापा का भी अच्छा अध्ययन किया है। सं० १९८१ में आपने 'मैथिली' नामक अपनी स्वतंत्र पत्रिका निकाली। अब श्राप समस्तीपुर में मुख्तारगिरी करते हैं । श्रापको रचनाएँ चक्रवर्ती, विश्वमोहन, डोम पुष्प, तरुण भारत, मिथिला-मिहिर आदि पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। आप सुकवि हैं।