पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ४.pdf/६३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
६३६
६३६
मिश्रबंधु

उत्तर नूतन स. १९८१ चक्र नाम-(४५२४) गंधर्वसिंह वर्मा 'सलिल' लश्कर, ग्वालियर-निवासी। जन्म-काल-सं० १९६५। रचना-काल-सं० १९८५ ग्रंथ-स्फुट रचना। उदाहरण- ऊपा, विद्या सुनहला अंचल नित्य माँगती हो क्यों भीख ? निंदनीय यह कार्य तुम्हें करने की किसने दी है सीख ? कहा उपा ने भारत मा हित मैंने लिया भिक्षुणीन्वेष । क्योंकि फटे अंचल में उसके भिक्षावृत्ति न रहती शेष । इसीलिये निज स्वांचल मैं फैला सकल विश्व-भर में मांगा करती हूँ स्वराज्य-क्षण गा-गाकर मीठे स्वर में। --( ४५२५) जगन्नाथप्रसाद 'मिलिंद' खत्री मुरार- छावनी, ग्वालियर-निवासी। जन्म-काल-सं० १९६०। रचना-काल-सं० १९८५ ग्रंथ-प्रताप-प्रतिज्ञा नाटक इत्यादि। विवरणनव भांव-युक्त अच्छी रचना है। 3 नाम- 3 कालकूट विष कुटिल एक में, सरल एक में संजीवन एक नयन में मरण तुम्हारे, एक नयन में है जीवन । सृजन निखिल छंदों का करते, खेल-खेल में युगलोचन; एक पलक में मुंदती रजनी, एक पलक में खुलता दिन । क्रीड़ा का क्रय सृजन विसर्जन, प्रचलित है प्रतिदिन प्रतिक्षण; कितना अस्थिर है लीलामय पलकों का उत्थान पतन।