सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:मुण्डकोपनिषद्.djvu/९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तृतीय Tuge प्रथम खण्ड -- प्रकारान्तरसे ब्रह्मानरूपण परा विद्योक्ता यया तदक्षरं जिससे उस अक्षर पुरुषसंज्ञक सत्यका ज्ञान होता है उस परा पुरुषाख्यं सत्यमधिगम्यते । विद्याका वर्णन किया गया, जिसका यदधिगमे हृदयग्रन्थ्यादिसंसार- ज्ञान होनेपर हृदयग्रन्थि आदि संसारके कारणका आत्यन्तिक नाश कारणस्यात्यन्तिकविनाश स्यात्। हो जाता है । तथा धनुर्ग्रहण आदिकी तदर्शनोपायश्च योगो धनुराधु- कल्पनासे उसके साक्षात्कारके उपाय योगका भी उल्लेख किया गया । पादानकल्पनयोक्तः । अथेदानी अब उसके सहकारी सत्यादि तत्सहकारीणि सत्यादिसाधनानि साधनोंका वर्णन करना है; इसी- के लिये आगेका अन्य आरम्भ वक्तव्यानीति तदर्थमुत्तरारम्भः । किया जाता है । यद्यपि ऊपर प्राधान्येन तत्त्वनिर्धारणं च तत्त्वका निश्चय किया जा चुका है तो भी अत्यन्त दुर्बोध होनेके प्रकारान्तरेण क्रियते अत्यन्त- कारण उसका प्रधानतासे दूसरी दुरवगाह्यत्वात्कृतमपि । तत्र तरह फिर निश्चय किया जाता है । अतः परमार्थवस्तुको समझनेके सूत्रभूतो मन्त्रः परमार्थवस्त्वव- लिये पहले इस सूत्रभूत मन्त्रका धारणार्थमुपन्यस्यते-- उपन्यास ( उल्लेख ) करते हैं-