१६८ मुझराचस नाटक २४९-५२-खस और मगध की सेना जयध्वज को फहराते हुए . आगे बढ़े। यवन और गांधार की सेना बीच में रहे। चेदि, हूण और शक के राजे ससैन्य पीछे पीछे आवें। कौलूतादि राजे मलयकेतु के रक्षार्थ उनके साथ रहें। राक्षस ने कौलूतादि राजों को अत्यन्त विश्वासपात्र समझ कर मलयकेतु के संरक्षण को नियुक्त किया था पर चाणक्य के षड्यंत्र से ससका मलयकेतु ने दूसरा अर्थ लगाया। खस वर्तमान गढवाल और उत्तरवर्ती प्रांत का प्राचीन नाम है। यहाँ की यह एक जाति है, जो ब्रात्य क्षत्रियों से उत्पन्न है और जिसका उल्लेख महाभारत तथा राजतरंगिणी में हुमा है। इस जाति वाले अब तक नैपाल और किस्तवाड़ ( काश्मीर ) में पाए जाते हैं । ये खामिया भी कहलाते हैं। ___ यवन से प्रीक जाति का तात्पर्य है। गांधार आधुनिक कंधार की रहने वाली जाति थी। चेदि बुदेलखंड में नर्मदा के उत्तर में एक राज्य था । हूण एक जंगली जाति थी जो मध्य एशिया से योरोप. तथा भारत में आई थी। भारत पर यह चढ़ाई पाँचवीं और छठी शताब्दियों में हुई थी। शक जाति मध्य एशिया से आई तुरुष्क जाति के अंतर्गत हो सकती है। शक पहले कुशल बंश के राजों के सूबेदार थे पर अंत में इनका प्रभाव गुजरात, सिंध, उत्तरी कोंकण से कुल राजपुताना तथा मालवा तक फैल गया था। शकों की समाप्तिः चंद्रगुप्त द्वितीय के समय चौथी शताब्दी के अंत में हुई। २६६-७३-मूल श्लोक का अर्थ यह है- सेवकों को पहले प्रभु का भय और फिर स्वामी के कृरापान पदाधिकारियों का भय होता है। उच्चपदस्थ पुरुषों से दुर्जन द्वेष रखते हैं, इससे उनके चित्त को पतन का भय बना रहता है। अनुवाद का अर्थ स्पष्ट है और मूल से उसका अधिक विस्तार होने के कारण भाव भी विस्तीर्ण हो गया है। भिन्नता इतनी है कि मूल के 'पतन की आशंका रहने के स्थान पर एक पूरा दोहा अनुवाद मे है और उसमें पतन का होना निश्चित बतलाया गया है।