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पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/१२३

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मुद्रा-राक्षस

हैं और कोई राज चाहते हैं। हमको सत्यवादी ने जो तीन अलङ्कार भेजे सो मिले हमने भी लेख अशून्य करने को कुछ भेजा है सो लेना। और जवानी हमारे अत्यन्त प्रामाणिक सिद्धार्थक से सुन लेना☆।

मलयकेतु—मित्र भागुरायण! इस लेख का आशय क्या है?

भागुरायण—भद्र सिद्धार्थक! यह लेख किस का है?

सिद्धार्थक—आर्य्य! मैं नहीं जानता।

भागुरायण—धूर्त! लेख लेकर जाता है और यह नहीं जानता कि किसने लिखा है, और संदेशा किस से कहेगा?

सिद्धार्थक—(डरते हुए की भाँति) आप से।

भागुरायण—क्यों रे! हम से?

सिद्धार्थक—आप ने पकड़ लिया। हम कुछ नहीं जानते कि क्या बात है।

भागुरायण—(क्रोध से) अब जानेगा। भद्र भासुरक! इस को बाहर लेजाकर जब तक यह सब कुछ न बतलावे तब तक खूब मारो।

पुरुष—जो आज्ञा (सिद्धार्थक को बाहर लेकर जाता है और हाथ में एक पेटी लिये फिर आता है) आर्य्य! उसका मारने के समय उसके बगल में से यह मुहर की हुई पेटी गिर पड़ी।

भागुरायण—(देख कर) कुमार! इस पर भी राक्षस की मुहर है।


  • यह वही लेख है जिसको चाणक्य से धोखा देकर

और अपने हाथ से राक्षस को मुहर उस पर करके सिद्धार्थक को दिया था ।