सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/४१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२४ मुद्राराक्षस सूत्र-- दुष्ट टेढ़ी मतिवारो। नन्दवंश जिन सहजहि निज क्रोधानल जारो। चन्द्रग्रहण को नाम सुनत निज नृप को मानी ।। इतही श्रावत चन्द्रगुप्त पै कछु भय जानी ||८|| तो अब चलो हम लोग चलें। (दोनों जाते हैं) इति प्रस्तावना। 'योग जो है वही बल से उस चन्द्रमा की रक्षा करता है । यहाँ बुध शब्द पण्डित के अथ में सम्बोध है, ग्रहह्वाची कदापि नहीं है । बुध शब्द को साथ में ले जाने से जो अर्थ होते हैं वे सब बनोबा है । इति । सं० १६३७ वैशाख शुक्ल ५ ऊँचे है गुरु बुध कवी, मिलि लरि होत विरूप । करत समागम सबहिं सो, यह द्विजराज अनूप ।। आपका पं० सुधाकर।