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पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/९२

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तृतीय अङ्क

काम से निरे बेसुध रहते थे इससे मैंने उनसे अधिकार लेकर केवल निर्वाह के योग्य जीविका कर दी थी, इससे उदास होकर कुमार मलयकेतु के पास चले गये और वहाँ अपना २ कार्य सुना कर फिर उसी पद पर नियुक्त हुए हैं और हिंगुरात और बलगुप्त ऐसे लालची हैं कि कितना भी दिया पर अन्त में मारे लालच के कुमार मलयकेतु के पास इस लोभ से जा रहे हैं कि यहीं बहुत मिलेगा, और जो आपका लड़पन का सेवक राजसेन था उसने आपकी थोड़ी ही कृपा से हाथी घोड़ा घर और धन सब पाया; पर इस भय से भाग कर मलयकेतु के पास चला गया कि यह सब छिन न जाय, और वह जो सिंहबलदत्त सेनापति का छोटा भाई भागुरायण है उससे पर्वतक से बड़ी प्रीति थी सो उसने कुमार मलयकेतु से यह कहा कि "जैसे विश्वासघात करके चाणक्य ने तुम्हारे पिता को मार डाला वैसे ही तुम्हें भी मार डालेगा इससे यहाँ से भाग चलो" एसे बहका कर कुमार मलयकेतु को भगा दिया और जब आपके बैरी चन्दनदासादिकों को दण्ड हुआ तब मारे डर के मलयकेतु के पास जा रहा, उसने भी यह समझ कर कि इसने मेरे प्राण बचाये और मेरे पिता का परिचित भी है उसको कृतज्ञता से अपना अन्तरङ्गी मंत्री बनाया है, और वह जो रोहिताक्ष और विजयवर्मा थे वह ऐसे अभिमानी थे कि जब आप उनके और नातेदारो का आदर करते थे तो वह कुढ़ते थे इसी से वे भी मलयकेतु के पास चले गये, बस यही उन लोगों की उदासी का कारण है।