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पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/२५६

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हिंसा और अहिंसा


सम्मानित और प्रतिष्ठित संस्थाने विना समझ बूझे और पूर्ण- तया विचार किये उतावलापनके साथ हड़तालकी निन्दा कर दी है। जिस मनुष्य या जातिका हृदय शोक और आवेशसे भरा है और निराशा अपनी लाल लाल आंखे काढे जिसकी ओर क्रूर नेत्रोस देख रही है मानो वह उसे निगल जानेके लिये प्रतिक्षण तैयार बैठी है, ऐसी जातिके लिये अपने हृदयस्थ वेदनाके भावोंको प्रगट करने के लिये कोई उपयुक्त साधन होना चाहिये । अभी थोड़े दिन पहले ही हमारी आत्मापर इतना भय लाद दिया गया था और हमलोग अपने हृदयके सच्चे उद्गारोंको लिखकर या कहकर प्रगट कर देनसे इतना डरते रहे कि हम लोगोंकी आत्मा इतनी पतित हो गई थी जैसे सूर्यके प्रकाशको चिरकाल तक न पानेके कारण किमो वस्तुपर भुकड़ी लग गई हो। यही कारण था कि हमलोगोमेंसे कितनोंने ही गुप्त मभायें कायम की थी। पर आज हमलोग उस अन्धकार. मय और बुरे युगसे आगे बढ़ गये है। आज हमलोग अपने हृदयक भावोंको लिख और कहकर दूलरो तक पूर्ण स्वतन्त्रता पूर्वक पहुंचा सकते हैं। आज कल हमलोगोपर कानूनका केवल उतना ही दबाव है जितना प्रत्येक स्वतन्त्र मनुष्य पर होना चाहिये। लिबरल लीग तथा अन्य ऐसी संस्थाओंके सदस्योंसे हमारा सानुनय अनुरोध है कि वे हमारे उपरोक्त कथनपर धीरताके साथ विचार करें और डरसे दबकर हम लोगोंकी जो अवस्था हो रही थी उसके मुकाबले में इस साह-