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पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/२७२

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दुर्गादास अंद्वानी

इस देश में तो जेल जीवन की ओर भी अधिक आवश्यकता है क्योंकि एक तो इस देश की वायु में सन्देह और अविश्वास के जीवाणु भर गये हैं, दूसरे खुफिया विभाग का इतना अधिक जोर है कि संसार में इसकी कही भी तुलना नहीं की जा सकती और इसकी चालबाजियां और उच्छृखलताये इतनी जबर्दस्त होती हैं कि बिना इस प्रकार यातना भोगे इसका दूर होना कठिन है ।

यदि इस तरह के अविश्वास और गुप्त पुलिस विभाग से देश की रक्षा करनी है तो सबसे उत्तम उपाय यही होगा कि लोगों के हृदयों से भय के भाव तथा हिंसा की प्रवृत्ति दूर की जाय । पर जबतक यह सुदिन नहीं उपस्थित होता प्रत्येक भारतवासी को जेल ही घर बना लेना चाहिये ।

इसलिये हमें पूर्ण विश्वास है कि दुर्गादास के मित्र क्षमा याचना के लिये न तो उन्हें सलाह देंगे और न उनकी पत्नी को । और न तो उनकी पत्नी के साथ सहानुभूति प्रगटकर उसके सुख और शान्ति मे वाधा पहुंचावेंगे । उसे अपने हृदय को कड़ा. करके इस बात पर हर्ष मनाना चाहिये कि उसका पति बिना किसी दोष के, आकरण जेल भेज दिया गया है । हमलोगों का परम कर्तव्य दुर्गादास की पत्नी को आवश्यक सहायता देना है । हमें विदित हुआ है कि दुर्गादास के मुकदमे में प्रायः १५,०००) रू० व्यय हुए । इन रुपयों का किसी अच्छे काम में प्रयोग हुआ होता । जहां हमलोग न्याय की संभावना नहीं देखते वहां