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पृष्ठ:योगिराज श्रीकृष्ण.djvu/११

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ग्रन्थकार लाला/9
 


वह मुख्य रूप से हिन्दू संगठन, अछूतोद्धार, शुद्धि जैसे सामाजिक कार्यक्रमों में ही दिलचस्पी लेती थी। इसी कारण कांग्रेस से उसका थोड़ा भी विरोध नहीं था। यद्यपि संकीर्ण दृष्टि के अनेक राजनैतिक कर्मी लालाजी के हिन्दू महासभा में रुचि लेने से नाराज भी हुए किन्तु उन्होंने इसकी कभी परवाह नहीं की और वे अपने कर्तव्यपालन में ही लगे रहे।


जीवन-संध्या

1928 में जब अंग्रेजों द्वारा नियुक्त साइमन कमीशन भारत आया तो देश के नेताओ ने उसका बहिष्कार करने का निर्णय लिया। 30 अक्टूबर, 1928 को कमीशन लाहौर पहुँचा तो जनता के प्रबल प्रतिरोध को देखते हुए सरकार ने धारा 144 लगा दी। लालाजी के नेतृत्वव में नगर के हजारों लोग कमीशन के सदस्यों को काले झण्डे दिखाने के लिए रेलवे स्टेशन पहुँचे और 'साइमन वापस जाओ' के नारों से आकाश गुँजा दिया। इस पर पुलिस को लाठीचार्ज का आदेश मिला। उसी समय अंग्रेज सार्जेट साण्डर्स ने लालाजी की छाती पर लाठी का प्रहार किया जिससे उन्हें सख्त चोट पहुँची। उसी सायं लाहौर की एक विशाल जनसभा में एकत्रित जनता को सम्बोधित करते हुए नरकेसरी लालाजी ने गर्जना करते हुए कहा--मेरे शरीर पर पड़ी लाठी की प्रत्येक चोट अंग्रेजी साम्राज्य के कफन की कील का काम करेगी। इस दारुण प्रहार से आहत लालाजी ने अठारह दिन तक विषम ज्वर की पीड़ा भोगकर 17 नवम्बर, 1928 को परलोक के लिए प्रस्थान किया।


बहुआयामी व्यक्तित्व

लाला लाजपतराय का व्यक्तित्व बहुआयामी था। वे एकसाथ ही उत्कृष्ट वक्ता, श्रेष्ठ लेखक, सार्वजनिक कार्यकर्ता, सेवाभावी समाजसेवक, राजनैतिक नेता, शिक्षाशास्त्री, चिन्तक, विचारक तथा दार्शनिक थे। आर्यसमाज से ही उन्होंने देश-सेवा का पाठ पढ़ा था और स्वामी दयानन्द से उन्होंने समर्पण तथा सेवा का आदर्श ग्रहण किया था। उनके शब्दों में आर्यसमाज मेरी माता तथा स्वामी दयानन्द मेरे धर्मपिता हैं। मैंने देश-सेवा का पाठ आर्यसमाज में ही पढ़ा है। लालाजी के बलिदान के पश्चात् देशबंधु चित्तरंजनदास की पत्नी श्रीमती बसतीदेवी ने एक वक्तव्य प्रसारित कर कहा था कि क्या देश में कोई ऐसा क्रान्तिकारी युवक नही है जो भारतकेसरी लालाजी की मौत का बदला ले सके? जब यह बात सरदार भगतसिंह तक पहुँची तो उसने लालाजी पर लाठियों का प्रहार करने वाले साण्डर्स को मारकर उस अमर देशभक्त की मौत का बदला ले लिया। लाला लाजपतराय देश के स्वाधीनता संग्राम के महान्से नानी थे। देशवासी उनके त्याग और बलिदान को सदा स्मरण रखेंगे।


लाला लाजपतराय-लेखक और साहित्यकार के रूप में

लालाजी का अध्ययन विशाल था । धार्मिक, सामाजिक, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय प्रश्नो पर उनका स्पष्ट चिन्तन था। उनका लेखन विशद विविध विषयों से सम्पृक्त तथा बहुआयामी था