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पृष्ठ:योगिराज श्रीकृष्ण.djvu/३३

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32 योगिराज श्रीकृष्ण
 


अवसर न मिलता।

प्रत्येक सुशिक्षित आर्य जानता है कि पुराण 18 हैं परन्तु इनके अतिरिक्त बहुत-सी ऐसी पुस्तके पाई जाती हैं जो उपपुराण के नाम से प्रसिद्ध हैं जो ऐसे किस्से-कहानियों से भरी है कि कोई भी मनुष्य उन्हें पढ़कर सत्य या वास्तविक नहीं कह सकता। उनका अधिकांश भाग तो एसी बातों से परिपूर्ण है जो बुद्धि और प्रकृति दोनों के विरुद्ध है और उनका अनुमान होना भी असम्भव है।

कुछ अंग्रेज तथा अनेक आर्य विद्वानों ने सहमत होकर यह व्यवस्था दी है कि वर्तमान पुराण वह पुराण नहीं है जिनका वर्णन उपनिषदों या अन्य प्राचीन ग्रंथों में पाया जाता है। उन अंग्रेज पुराणतत्ववेत्ताओ ने वर्तमान पुराणों का समय निश्चय किया है जिसके मानने से यह परिणाम नहीं निकलता कि वर्तमान काल में से कोई भी विक्रम संवत् बहुत पहले के है। इनमे से बहुत-से पुराणों का समय तो 14वीं या 15वीं शताब्दी ईस्वी तक निश्चित किया गया हे। इसके अतिरिक्त पुराणों में बहुत से ऐसे प्रमाण मिलते हैं जिनसे सिद्ध होता है कि प्राचीन पुराण तो लुप्त हो गए और वर्तमान पुराण आधुनिक समय में बनाये गये हैं।

(1) मत्स्यपुराण में ब्रह्मवैवर्तपुराण का वर्णन करते हुए लिखा हैः

1

अर्थ-"वह पुराण जिसको सूतजी ने नारद के सामने वर्णन किया और जिसमें कृष्ण का महत्त्व, रथन्तर कल्प के समाचार और ब्रह्म वराह चरित्र वर्णित है अठारह हजार श्लोकों में है और उसका नाम ब्रह्मवैवर्त पुराण है।"

अब यदि हम उस पुराण को देखें जो आजकल ब्रह्मवैवर्त पुराण के नाम से प्रसिद्ध है तो हमको ज्ञात होगा कि इसमें न ब्रह्म वराह चरित्र है, न रथन्तर कल्प के समाचार हैं और न उसमे इस बात का ही कही पता लगता है कि इस पुराण को सूतजी ने नारद के सामने वर्णन किया था।

2

विष्णु पुराण के तीसरे खंड के छठे अध्याय के 16 से 19 श्लोक तक यों लिखा है

वेदव्यास ने (जो पुराणों की विद्या में पूर्ण थे) एक संहिता बनाई थी जिसमें आख्यान, उपाख्यान, गाथा और कल्पसिद्धि थी। उन्होंने फिर यह पुराण अपने प्रसिद्ध शिष्य लोमहर्षण को दे दिया। सूत लोमहर्षण के 6 शिष्य हुए-सावर्णि, अग्निवर्त, मित्रायु, वैशम्पायन, अकृत व्रण और हारीत। इनमें से कश्यप, हारीत और वैशम्पायन ने एक-एक पुराण संहिता लिखी परन्तु सबका मूल वही संहिता थी जिसका नाम लोमहर्षण संहिता था और जिसको लोमहर्षण ने रचा था।

(3) अग्नि पुराण में भी यही लिखी है-