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पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/१५२

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रंगभूमि


गना। मुझे दबकर, झुककर, दीनता से, नम्रता से अपनी समस्या को उनके सम्मुग्व उपस्थित करने का अवसर मिला। यदि उनकी ज्यादती होती, तो मेरी ओर से भी नाड़ाई की जाती। उस दशा में दबना नीति और आचरण के विरुद्ध होता। ज्यादती हमारी ओर से हुई, बस यही मेरी जीत थी।"

ईश्वर सेवक बोले—"ईश्वर, इस पापी को अपनी शरण में ले। बर्फ आजकल बहुत महँगी हो गई है, फिर समझ में नहीं आता, क्यों इतनी निर्दयता से वर्च की जानी है। सुराही का पानी काफी ठण्डा होता है।"

जॉन सेवक—"पापा, क्षमा कीजिए, बिना बर्फ के प्याम ही नहीं बुझनी।"

ईश्वर सेवक—"खुदा ने चाहा बेटा, तो उस जमीन का मुआमला नय हो जायगा। आज तुमने बड़ी चतुरता से काम किया।

मिसेज सेवक—"मुझे इन हिन्दुस्थानियों पर विश्वास नहीं आता। दगाबाजी कोई इनसे सीख ले। अभी सब-के-सब हाँ हाँ कर रहे हैं, मौका पड़ने पर सब निकल जायेंगे। महेंद्रसिंह ने नहीं धोखा दिया? यह जाति ही हमारी दुश्मन है। इनका वश चले, तो एक ईसाई भी मुल्क में न रहने पाये।"

प्रभु सेवक'मामा, यह आपका अन्याय है? पहले हिन्दुस्थानियों को ईसाइयों से कितना ही द्वेष रहा हो, किंतु अब हालत बदल गई है। हम खुद अंगरेजों की नकल करके उन्हें चिढ़ाते हैं। प्रत्येक अवसर पर अँगरेजों की सहायता से उन्हें दबाने की चेष्टा करते हैं। किंतु यह हमारी राजनीतिक भ्रांति है। हमारा उद्धार देशवासियों मे भ्रातृभाव रखने में है, उन पर रोब जमाने में नहीं। आखिर हम भी तो इसी जननी की संतान हैं। यह असंभव है कि गोरी जातियाँ केवल धर्म के नाते हमारे साथ भाईचारे का व्यवहार करें। अमेरिका के हबशी ईसाई हैं, लेकिन अमेरिका के गोरे उनके साथ कितना पाशविक और अत्याचार-पूर्ण बर्ताव करते हैं! हमारी मुक्ति भारतवासियों के माथ है।"

मिसेज सेवक—"खुदा वह दिन न लाये कि हम इन विधर्मियों की दोस्ती को अपने उद्धार का साधन बनायें। हम शासनाधिकारियों के सहधर्मी हैं। हमारा धर्म, हमारी रीति-नीति, हमारा आहार-व्यवहार अँगरेजों के अनुकूल है। हम और वे एक कलिसिया में, एक परमात्मा के सामने, सिर झुकाते हैं। हम इस देश में शासक बनकर रहना चाहते हैं, शासित बनकर नहीं। तुम्हें शायद कुँवर भरतसिंह ने यह उपदेश दिया है। कुछ दिन और उनकी सोहबत रही, तो शायद तुम भी ईसू से विमुख हो जाओ।"

प्रभु सेवक—"मुझे तो ईसाइयों में जाति के विशेष लक्षण नहीं दिखाई देते।"

जॉन सेवक—"प्रभु सेवक, तुमने बड़ा गहन विषय छेड़ दिया। मेरे विचार में हमारा कल्याण अँगरेजों के साथ मेल-जोल करने में है। अँगरेज इस समय भारतवासियों की संयुक्त शक्ति से चिंतित हो रहे हैं। हम अँगरेजों से मैत्री करके उन पर अपनी राज-भक्ति का सिक्का जमा सकते हैं, और मनमाने स्वत्व प्राप्त कर सकते हैं। खेद यही है कि