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पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/१५६

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विनयसिंह के जाने के बाद सोफिया को ऐसा प्रतीत होने लगा कि रानी जाह्नवी मुझसे खिंची हुई हैं। वह अब उसे पुस्तकें तथा पत्र पढ़ने या चिट्टियाँ लिखने के लिए बहुत कम बुलाती, उसके आचार-व्यवहार को संदिग्ध दृष्टि से देग्वतीं। यद्यपि अपनी बदगुमानी को वह यथासाध्य प्रकट न होने देतीं, पर सोफी को ऐसा खयाल होता कि मुझ पर अविश्वास किया जा रहा है। वह जब कभी बाग में सैर करने चली जाती, या कहीं घूमने निकल जाती, तो लौटने पर उसे ऐसा मालूम होता कि मेरी किताबें उलट- पलट दी गई है। यह बदगुमानी उस वक्त और भी असह्य हो जाती, जब डाकिये के आने पर रानीजी स्वयं उसके हाथ से पत्र आदि लेती और बड़े ध्यान से देखती कि सोफिया का कोई पत्र तो नहीं है। कई बार सोफिया को अपने पत्रों के लिफाफे फटे हुए मिले। वह इस कूट नीति का रहस्य खूब समझती थी। यह रोक-थाम केवल इसलिए है कि मेरे और विनयसिंह के बीच में पत्र-व्यवहार न होने पाये। पहले रानीजी सोफिया से विनय और इन्दु की चर्चा अक्सर किया करतीं। अब भूलकर भी विनय का नाम न लेती। यह प्रेम की पहली परीक्षा थी।

किंतु आश्चर्य यह था कि सोफिया में अब वह आत्माभिमान न था; जो नाक पर मक्खी न बैठने देती थी, वह अब अत्यन्त सहनशील हो गई थी। रानीजी से द्वेप करने के बदले वह उनकी संशय-निवृत्ति के लिए अवसर खोजा करती थी। उसे रानीजी का बर्ताव सर्वथा न्याय-संगत मालूम होता था। वह सोचती---इनकी परम अभिलाया है कि विनय का जीवन आदर्श हो और मैं उनके आत्मसंयम में बाधक न बनूँ। मैं इन्हें कैसे समझाऊँ कि आपकी अभिलाषा को मेरे हाथों जरा-सा भी झोका न लगेगा। मैं तो स्वयं अपना जीवन एक ऐसे उद्देश्य पर समर्पित कर चुकी हूँ, जिसके लिए वह काफी नहीं। मैं स्वयं किसी इच्छा को अपने उद्देश्य-मार्ग का काँटा न बनाऊँगी। लेकिन उसे यह अवसर न मिलता था। जो बातें जबान पर नहीं आ सकतीं, उनके लिए कभी अवसर नहीं मिलता।

सोफी को बहुधा अपने मन की चंचलता पर स्वेद होना। वह मन को इधर से हटाने के लिए पुस्तकावलोकन में मग्न हो जाना चाहती; लेकिन जब पुस्तक मामने रवली रहती और मन कहीं और जा पहुँचता, तो वह झुंझलाकर पुस्तक बन्द कर देती और सोचती-यह मेरी क्या दशा है! क्या माया यह कपट-रूप धारण करके मुझे सन्मार्ग से विचलित करना चाहती है? मैं जानकर क्यों अनजान बनी जाती हूँ? तब वह प्रतिज्ञा करती कि मैं इस काँटे को हृदय से निकाल डालूँगी।

लेकिन प्रेम-ग्रस्त प्राणियों की प्रतिज्ञा कायर की समर-लालसा है, जो द्वद्वी की ललकार सुनते ही विलुप्त हो जाती है। सोफिया विनय को तो भूल जाना चाहती थी; पर