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पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/१६२

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रंगभूमि


किया। अपनी कविताओं में तो अहिंसा के देवता बन जाते हो, वहाँ जरा-सी बात पर इतने जामे से बाहर हो गये!”

प्रभु सेवक-"गाली सह लेता?"

सोफिया--"जब तुम मारनेवाले को मारोगे, गाली देनेवाले को भी मारोगे, तो अहिंसा का निर्वाह कब करोगे? राह चलते तो किसी को कोई नहीं मारता। वास्तव में किसी युवक को उपदेश करने का अधिकार नहीं है, चाहे उसकी कवित्व-शक्ति कितनी ही विलक्षण हो। उपदेश करना सिद्ध पुरुपों ही का काम है। यह नहीं कि जिसे जरा तुकबंदी आ गई, वह लगा शांति, संतोप और अहिंसा का पाठ पढ़ाने। जो बात दूसरों को सिखलाना चाहते हो, वह पहले स्वयं सीख लो।"

प्रभु सेवक-"ठीक यही बात विनय ने भी अपने पत्र में लिखी है। लो, याद आ गया। यह तुम्हारा पत्र है। मुझे याद ही न रही थी। यह प्रसंग न आ जाता, तो जेब में रखे ही लौट जाता।"

यह कहकर प्रभु सेवक ने एक लिफाफा निकालकर सोफिया के हाथ में रख दिया।

सोफिया ने पूछा- “आजकल कहाँ हैं?"

प्रभु सेवक-"उदयपुर के पहाड़ी प्रांतों में घूम रहे हैं। मेरे नाम जो पत्र आया है, उसमें तो उन्होंने साफ लिखा है कि मैं इस सेवा-कार्य के लिए सर्वथा अयोग्य हूँ। मुझमें उतनी सहनशीलता नहीं, जितनी होनी चाहिए। युवावस्था अनुभव-लाभ का समय है। अवस्था प्रौढ़ हो जाने पर ही सार्वजनिक कार्यों में सम्मिलित होना चाहिए। किसी युवक को सेवा-कार्य करने को भेजना वैसा ही है, जैसे किसी बच्चे वैद्य को रोगियों के कष्ट-निवारण के लिए भेजना।”

प्रभु सेवक चले गये, नो माफिया सोचने लगी --"यह पत्र पद या न पद? विनय इसे रानीजी से गुप्त रखना चाहते है, नहीं तो यहीं के पते से न भेजते? मैंने अभी रानीजी को वचन दिया है, उनसे पत्र-व्यवहार न करूँगी। इस पत्र को खोलना उचित नहीं। रानीजी को दिग्वा दूँ। इससे उनके मन में मुझ पर जो संदेह है, वह दूर हो जायगा। मगर न जाने क्या बात लिखी है। संभव है, कोई ऐसी बात हो, जो रानी के क्रोध को ओर मी उत्तेजित कर दे। नहीं, इस पत्र को गुप्त ही रखना चाहिए। रानी को दिखाना मुनामिव नहीं।"

उसने फिर सोचा-"पढ़ने से क्या फायदा, न जाने मेरे चित्त की क्या दशा हो। मुझे अब अपने ऊपर विश्वास नहीं रहा। जब इम प्रेमांकुर को जड़ से उखाड़ना ही है, तो उसे क्यों सींचूँ ? इस पत्र को रानी के हवाले कर देना ही उचित है।"

सोफिया ने और ज्यादा सोच-विचार न किया। शंका हुई, कहीं मैं बिचलित न हो नाऊँ। चलनी में पानी नहीं ठहरता।

उसने उसी वक्त वह पत्र में जाकर रानी को दे दिया। उन्होंने पृछा---"किसका