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पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/२३७

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रंगभूमि


सोफी-सूरदास, यह मेरी सिफारिश का फल नहीं, तुम्हारी तपस्या का फल है। राजा साहब को तुमने खूब छकाया। अब थोड़ी-सी कसर और है। ऐसा बदनाम कर दो कि शहर में किसी को मुँह न दिखा सके, इस्तीफा देकर अपने इलाके की राह लें।"

सूरदास—"नहीं मिस साहब, यह खेलाड़ियों की नीति नहीं है। खेलाड़ी जीतकर हारनेवाले खेलाड़ी की हँसी नहीं उड़ाता, उससे गले मिलता है और हाथ जोड़कर कहता है-'भैया, अगर हमने खेल में तुमसे कोई अनुचित बात कही हो, या कोई अनुचित ब्योहार किया हो, तो हमें माफ करना।' इस तरह दोनों खेलाड़ी हँसकर अलग होते हैं, खेल खतम होते ही दोनों मित्र बन जाते हैं, उनमें कोई करट नहीं रहता। मैं आज राजा साहब के पास गया था और उनके हाथ जोड़ आया। उन्होंने मुझे भोजन कराया। जब चलने लगा, तो बोले, मेरा दिल तुम्हारी ओर से साफ है, कोई संका मत करना।”

सोफिया—“ऐसे दिल के साफ तो नहीं हैं, मौका पाकर अवश्य दगा करेंगे, मैं तुमसे कहे देती हूँ।"

सूरदास-"नहीं मिस साहब, ऐसा मत कहिए। किसी पर संदेह करने से अपना चित्त मलीन होता है। वह बिदवान् हैं, धर्मात्मा हैं, कभी दगा नहीं कर सकते। और जो दगा ही करेंगे, तो उन्हीं का धरम जायगा; मुझे क्या, मैं फिर इसी तरह फरियाद करता रहूँगा। जिस भगवान् ने अबकी बार सुना है, वही भगवान् फिर सुनेंगे।"

प्रभु सेवक—"और जो कोई मुआमला खड़ा करके कैद करा दिया, तो?"

सूरदास—(हँसकर) "इसका फल उन्हें भगवान् से मिलेगा। मेरा धरम तो यही है कि जब कोई मेरी चीज पर हाथ बढ़ाये, तो उसका हाथ पकड़ लूँ। वह लड़े, तो लड़ें, और उस चीज के लिए प्रान तक दे दूँ। चीज मेरे हाथ आयेगी; इससे मुझे मतलब नहीं, मेरा काम तो लड़ना है, और वह भी धरम की लड़ाई लड़ना। अगरः राजा साहब दगग भी करें, तो मैं उनसे दगा न करूँगा।"

सोफिया—"लेकिन मैं तो राजा साहब को इतने सस्ते न छोड़ेगी।"

सूरदास—"मिस साहब, आप बिदवान् होकर ऐसी बातें करती हैं, इसका मुझे अचरज है। आपके मुँह से ये बातें सोभा नहीं देतीं। नहीं, आप हँसी कर रही हैं। आपसे कभी ऐसा काम नहीं हो सकता।”

इतने में किसी ने पुकारा—"सूरदास, चलो, ब्राह्मण लोग आ गये हैं।"

सूरदास लाठी टेकता हुआ घाट की ओर चला। ताँगा भी चला।

प्रभु सेवक ने कहा—"चलोगी मि० क्लार्क की तरफ?”

सोफिया ने कहा—"नहीं, घर चलो।"

रास्ते में कोई बातचीत नहीं हुई। सोफिया किसी विचार में मग्न थी। दोनों आदमी सिगरा पहुँचे, तो चिराग जल चुके थे। सोफी सीधे अपने कमरे में गई, मेज़ का ड्राअर खोला, प्रहसन का हस्त-लेख निकाला और टुकड़े-टुकड़े करके जमीन पर फेक दिया।

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