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पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/२५२

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रंगभूमि


करते—'सैयाँ भये कोतवाल, अब डर काहे का? प्यादे से फरजी भयो, टेढो-टेढ़ो जाय।" एक बार किसी चोरी के सम्बन्ध में नायकराम के घर में तलाशी हो गई। नायकराम को संदेह हुआ, सूरदास ने यह तीर मारा है। इसी भाँति एक बार भैरो से आबकारी के दारोगा ने जवाब तलब किया। भैरो ने शायद नियम के विरुद्ध आधी रात तक दूकान खुली रखी थी। भैरो का भी शुभा सूरदास ही पर हुआ, इसी ने यह चिनगारी छोड़ी है। इन लोगों के संदेह पर तो सूरदास को बहुत दुःख न हुआ, लेकिन जब सुभागी स्नुल्लमखुल्ला उसे लांछित करने लगी, तो उसे बहुत दुःख हुआ। उसे विश्वास था कि कम-से-कम सुभागी को मेरी नीयत का हाल मालूम है। उसे मुझको इन लोगों के अन्याय से बचाना चाहिए था, मगर उसका मन भी मुझसे फिर गया।

इस भाँति कई महीने गुजर गये। एक दिन रात को सूरदास खा-पीकर लेटा हुआ था कि किसी ने आकर चुपके से उसका हाथ पकड़ा। सूरदास चौंका, पर सुभागी की आवाज़ पहचानकर बोला-"क्या कहती है?"

सुभागी—"कुछ नहीं, जरा मडैया में चलो, तुमसे कुछ कहना है।"

सूरदास उठा और सुभागी के साथ झोपड़ी में आकर बोला-"कह, क्या कहती है? अब तो तुझे भी मुझसे बैर हो गया है। गालियाँ देती फिरती है, चारों ओर बदनाम कर रही है। बतला, मैंने तेरे साथ कौन-सी बुराई की थी कि तूने मेरी बुराई पर कमर बाँध ली? और लोग मुझे भला-बुरा कहते हैं, मुझे रंज नहीं होता; लेकिन जब तुझे ताने देते सुनता हूँ, तो मुझे रोना आता है, कलेजे में पीड़ा-सी होने लगती है। जिस दिन भैरो की तलबी हुई थी, तूने मुझे कितना कोसा था। सच बता, क्या तुझे भी सक हुआ था कि मैंने ही दारोगाजी से सिकायत की है? क्या तू मुझे इतना नीच समझती है? बता।"

सुभागी ने करुणावरुद्ध कंठ से उत्तर दिया—"मैं तुम्हारा जितना आदर करती हूँ, उतना और किसी का नहीं। तुम अगर देवता होते, तो भी इतनी ही सिरधा से तुम्हारी पूजा करती।"

सूरदास—"मैं क्या घमंड करता हूँ? साहब से किसकी सिकायत करता हूँ? जब जमीन निकल गई थी, तब तो लोग मुझसे न चिढ़ते थे। अब जमीन छूट जाने से क्यों सब-के-सब मेरे दुसमन हो गये हैं? बता, मैं क्या घमंड करता हूँ? मेरी जमीन छूट गई है, तो कोई बादसाही मिल गई है कि घमंड करूँगा?"

सुभागी—"मेरे मन का हाल भगवान जानते होंगे।"

सूरदास—"तो मुझे क्यों जलाया करती है?"

सुभागी—"इसलिए।"

यह कहकर उसने एक छोटी-सी पोटली सूरदास के हाथ में रख दी। पोटली भारी थी। सूरदास ने उसे टटोला और पहचान गया। यह उसी की पोटली थी, जो चोरी गई थी। अनुमान से मालूम हुआ कि रुपये भी उतने ही हैं। विस्मित होकर बोला-"यह कहाँ मिली?" .