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पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/२८९

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रंगभूमि


वह यहाँ गवर्नमेंट के प्रतिनिधि होकर आये हैं, केवल सैर-सपाटे करने के लिए नहीं। क्यों विलियम, तुम्हें यहाँ रहने में कोई आपत्ति तो नहीं है? यहाँ की रिपोर्ट भी तो करनी पड़ेगी।"

क्लार्क ने एक चुस्की लेकर कहा-"तुम्हारी इच्छा हो, तो मैं नरक में भी स्वर्ग का सुख ले सकता हूँ। रहा रिपोर्ट लिखना, वह तुम्हारा काम है।"

नीलकंठ-"मेरी आपसे सविनय प्रार्थना है कि रियासत को सँभालने के लिए कुछ और समय दीजिए। अभी रिपोर्ट करना हमारे लिए घातक होगा।"

इधर तो यह अभिनय हो रहा था, सोफिया प्रभुत्व के सिंहासन पर विराजमान थी, ऐश्वर्य चँवर हिलाता था, अष्टसिद्धि हाथ बाँधे खड़ी थी। उधर विनय अपनी अँधेरी कालकोठरी में म्लान और क्षुब्ध बैठा हुआ नारी जाति की निष्ठुरता और अहृदयता पर रो रहा था। अन्य कैदी अपने-अपने कमरे साफ कर रहे थे, उन्हें कल नये कंबल और नये कुरते दिये गये थे, जो रियासत के इतिहास में एक नई घटना थी। जेल के कर्म-चारी कैदियों को पढ़ा रहे थे-"मेम साहब पूछे, तुम्हें क्या शिकायत है, तो सब लोग एक स्वर से कहना, हजूर के प्रताप से हम बहत सुखी हैं और हजर के जान-माल की खैर मनाते हैं। पूछे क्या चाहते हो, तो कहना, हुजूर की दिनोंदिन उन्नति हो, इसके सिवा हम कुछ नहीं चाहते। खबरदार, जो किसी ने सिर ऊपर उठाया और कोई बात मुँह से निकाली, खाल उधेड़ ली जायगी।" कैदी फूले न समाते थे। आज मेम साहब की आमद की खुशी में मिठाइयाँ मिलेंगी। एक दिन की छुट्टी होगी। भगवान् उन्हें सदा सुखी रखें कि हम अभागों पर इतनी दया करती हैं।

किंतु विनय के कमरे में अभी तक सफाई नहीं हुई। नया कंबल पड़ा हुआ है, छुआ तक नहीं गया। कुरता ज्यों-का-त्यों तह किया हुआ रखा है, वह अपना पुराना कुरता ही पहने हुए है। उसके शरीर के एक-एक रोम से, मस्तिष्क के एक-एक अणु से, हृदय की एक-एक गति से यही आवाज आ रही है-"सोफिया! उसके सामने क्योंकर जाऊँगा?" उसने सोचना शुरू किया—"सोफिया यहाँ क्यों आ रही है? क्या मेरा अपमान करना चाहती है ? सोफी, जो दया और प्रेम की सजीव मूर्ति थी, क्या वह मुझे क्लार्क के सामने बुलाकर पैरों से कुचलना चाहती हैं? इतनी निर्दयता, और मुझे-जैसे अभागे पर, जो आप ही अपने दिनों को रो रहा है! नहीं, वह इतनी वज-हृदया नहीं है, उसका हृदय इतना कठोर नहीं हो सकता। यह सब मि० क्लार्क को शरारत है, वह मुझे सोफी के सामने लजित करना चाहते हैं, पर मैं उन्हें यह अवसर न दूँगा, मैं उनके सामने जाऊँगा ही नहीं, मुझे बलात् ले जाये, जिसकी जी चाहे। क्यों बहाना करूँ कि मैं बीमार हूँ? साफ कह दूँगा, मैं वहाँ नहीं जाता। अगर जेल का यह नियम है, तो हुआ करे, मुझे ऐसे नियम की परवाह नहीं, जो बिलकुल निरर्थक है। सुनता हूँ, दोनों यहाँ एक सप्ताह तक रहना चाहते हैं, क्या प्रजा को पीस ही डालेंगे? अब भी तो मुश्किल से आधे आदमी बच रहे होंगे, सैकड़ों निकाल दिये