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पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/३०

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रंगभूमि

सोफिया-"तो मैं मजबूर होकर अपने को उनकी उम्मत से बाहर समझुँगी; क्योंकि बाइबिल के प्रत्येक शब्द पर ईमान लाना मेरे लिए असंभव है।"

मिसेज़ सेवक-“तू विधर्मिणी और भ्रष्टा है। प्रभु मसीह तुझे कभी क्षमा न करेंगे।"

सोफ़िया--'अगर धार्मिक संकीर्णता से दूर रहने के कारण ये नाम दिये जाते हैं, तो मुझे उनके स्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं है।"

मिसेज़ सेवक से अब जन्त न हो सका। अभी तक उन्होंने कातिलवार न किया था। मातृस्नेह हाथों को रोके हुए था। लेकिन सोफिया के वितंडावाद ने अब उनके धैर्य का अंत कर दिया। “बोलीं—प्रभु मसीह से विमुख होनेवाले के लिए इस घर में जगह नहीं है।"

प्रभु सेवक—"मामा, आप घोर अन्याय कर रही हैं। सोफिया यह कब कहती है कि मुझे प्रभु मसीह पर विश्वास नहीं है।"

मिसेज़ सेवक—"हाँ, वह यही कह रही है, तुम्हारी समझ का फेर है। ईश्वर-ग्रन्थ पर ईमान न लाने का और क्या अर्थ हो सकता है? इसे प्रभु मसीह के अलौकिक कृत्यों पर अविश्वास और उनके नैतिक उपदेशों पर शंका है। यह उनके प्रायश्चित्त के तत्त्व को नहीं मानती, उनके पवित्र आदेशों को स्वीकार नहीं करती।"

प्रभु सेवक—“मैंने इसे मसीह के आदेशों का उल्लंघन करते कभी नहीं देखा।"

सोफिया—“धार्मिक विषयों में मैं अपनी विवेक-बुद्धि के सिवा और किसी के आदेशों को नहीं मानती।"

मिसेज़ सेवक—"मैं तुझे अपनी संतान नहीं समझती, और तेरी सूरत नहीं देखना चाहती।"

यह कहकर सोफिया के कमरे में घुस गई, और उसकी मेज पर से बौद्ध-धर्म और वेदांत के कई ग्रंथ उठाकर बाहर बरामदे में फेक दिये! उसी आवेश में उन्हें पैरों से कुचला और जाकर ईश्वर सेवक से बोलीं—“पापा, आप सोफी को नाहक बुला रहे हैं, वह प्रभु मसीह की निन्दा कर रही है!”

मि० ईश्वर सेवक ऐसे चौंके, मानों देह पर आग की चिनगारी गिर पड़ी हो, और अपनी ज्योति-विहीन आँखों को फाड़कर बोले-"क्या कहा, सोफी प्रभु महीस की निंदा कर रही है? सोफ़ी?"

मिसे सेवक—"हाँ-हाँ, सोफी। कहती है, मुझे उनकी विभूतियों पर, उनके उप-देशों और आदेशों पर, विश्वास नहीं है।"

ईश्वर सेवक—(ठंडी साँस खींचकर) "प्रभु मसीह, मुझे अपने दागन में छुपा, अपनी भटकती हुई भेड़ों को सच्चे मार्ग पर ला। कहाँ है सोफी? मुझे उसके पास ले चलो, मेरे हाथ पकड़कर उठाओ। खुदा, मेरी बेटी के हृदय को अपनी ज्योति से जगा।