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पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/३३७

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रंगभूमि

नायकराम—"भैया, चाहे अपनी जान निकल जाय, उन पर कोई रेप न आने पायेगा। लेकिन यह भी बता दो कि वहाँ हम लोगों की जान का जोखम तो नहीं है?"

इंद्रदत्त—(विनय से) "अगर वे लोग तुमसे वैर साधना चाहते, तो अब तक तुम लोग जीते न रहते। रियासत की समस्त शक्ति भी तुम्हारी रक्षा न कर सकती। उन लोगों को तुम्हारो एक-एक बात की खबर मिलती रहती है। यह समझ लो कि तुम्हारी जान उनकी मुट्ठी में है। इतने प्रजा-द्रोह के बाद अगर तुम अभी जिंदा हो, तो यह मिस सोफिया की कृपा है। अगर मिस सोफिया की तुमसे मिलने की इच्छा होती, तो इससे ज्यादा आसान कोई काम न था, लेकिन उनकी तो यह हालत है कि तुम्हारे नाम ही से चिढ़ती हैं। अगर अब भी उनसे मिलने की अभिलाषा हो, तो मेरे साथ आओ।”

विनय सिंह को अपनी विचार-परिवर्तक शक्ति पर विश्वास था। इसकी उन्हें लेश-मात्र भी शंका न थी कि सोफी मुझसे बातचीत न करेगी। हाँ, खेद इस बात का था कि मैंने सोफी ही के लिए अधिकारियों को जो सहायता दी, उसका परिणाम यह हुआ। काश मुझे पहले ही मालूम हो जाता कि सोफी मेरी नीति को पसंद नहीं करती, वह मित्रों के हाथ में है और सुखी है, तो मैं यह अनीति करता ही क्यों? मुझे प्रजा से कोई वैर तो था नहीं। सोफ़ी पर भी तो इसकी कुछ-न-कुछ जिमेदारी है। वह मेरी मनोवृत्तियों को जानती थी। क्या वह एक पत्र भेजकर मुझे अपनी स्थिति की सूचना न दे सकती थी! जब उसने ऐसा नहीं किया, तो उसे अब मुझ पर त्यौरियाँ चढ़ाने का क्या अधिकार है?”

यह सोचते वह इंद्रदत्त के पीछे-पीछे चलने लगे। भूख-प्यास हवा हो गई।