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पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/८१

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रंगभूमि


सौभाग्य से माहिरअली के पैर बड़े थे। यथासाध्य वह भाइयों को कोई कष्ट न होने देते थे। लेकिन कभी हाथ तंग रहने के कारण उनके लिए नये कपड़े न बनवा सकते, या फीस देने में देर हो जाती, या नाश्ता न मिल सकता, या मदरसे में जलपान करने के लिए पैसे न मिलते, तो दोनों माताएँ व्यंग्यों और कटूक्तियों से उनका हृदय छेद डालती थीं। बेकारी के दिनों में वह बहुधा, अपना बोझ हलका करने के लिए, स्त्री और बच्चों को मैके पहुँचा दिया करते थे। उपहास से बचने के खयाल से एक-आव महीने के लिए बुला लेते, और फिर किसी-न-किनी बहाने से विदा कर देते। जब से मि० जॉन सेवक की शरण आये थे, एक प्रकार से उनके सुदिन आ गये थे; कल की चिंता सिर पर सवार न रहती थी। माहिरअली की उम्र पंद्रह से अधिक हो गई थी। अब सारी आशाएँ उसी पर अवलंबित थीं। सोचते, जब माहिर मैट्रिक पास हो जायगा, तो साहब से सिफारिश कराके पुलिस में भरती करा दूँगा। पचास रुपये से क्या कम वेतन मिलेगा। हम दोनों भाइयों की आय मिलकर ८०) हो जायगी। तब जीवन का कुछ आनंद मिलेगा। तब तक जाहिरअली भी हाथ-पैर सँभाल लेगा, फिर चैन-ही-चैन है। बस, तीन-चार साल की और तकलीफ है। स्त्री से बहुधा झगड़ा हो जाता। वह कहा करतो-"ये भाई-बंद एक भी काम न आयेंगे। ज्यों ही अवसर मिला, पर झाड़कर निकल जायँगे, तुम खड़े ताकते रह जाओगे।” ताहिरअली इन बातों पर स्त्री से रूठ जाते। उसे घर में आग लगानेवाली, विष की गाँठ कहकर रुलाते।

आशाओं और चिंताओं से इतना दबा हुआ व्यक्ति मिलेज सेवक के कटु वाक्यों का क्या उत्तर देता। स्वामी के कोप ने ईश्वर के कोप को परास्त कर दिया। व्यथित कंठ से बोले—"हुजूर का नमक खाता हूँ, आपकी मरजी मेरे लिए खुदा के हुक्म का दरजा रखती है। किताबों में आंका को खुश रखने का वही सवाब लिखा है, जो खुदा को खुश रखने का है। हुजूर की नमकहरामी करके खुदा को क्या मुँह दिखलाऊँगा!"

जॉन सेवक_"हाँ, अब आर आये सीधे रास्ते पर। जाइए, अपना काम कीजिए। धर्म और व्यापार को एक तराजू में तौलना मूर्खता है। धर्म धर्म है, व्यापार व्यापार; परस्पर कोई संबंध नहीं। संसार में जीवित रहने के लिए किसी व्यापार की जरूरत है, धर्म की नहीं। धर्म तो व्यापार का शृंगार है। वह धनाधीशों ही को शोभा देता है। खुदा आपको समाई दे, अवकाश मिले, घर में फालतू रुपये हों, तो नमाज पढ़िए, हज कीजिए, मसजिद बनवाइए, कुँए खुदवाइए। तब मजहब है, खाली पेट ख़ुदा का नाम लेना पाप है।"

ताहिरअली ने झुककर सलाम किया, और घर लौट आये।