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पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/११३

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"देखो चाचा! मामले की बात है। काम हो जाने पर आप हमसे कौड़ी-गण्डे से ले लीजिएगा। पहले देने की बात समझ में नहीं आती। काम न हुआ तो?"

"क्या लड़कपन की बात करते हो। काम कैसे न हो।"

"जब आपको इतना विश्वास है तो फिर रुपये भी मिल जायँगे--- परन्तु काम हो जाने पर---व्यवहार की बात है चाचा---नाराज मत होना।"

"परन्तु पूजन-सामग्री के लिए तो कुछ दे दो! उसके लिए हम अपने पास से रुपये नहीं लगायेंगे।"

"कितना रुपया लगेगा?"

"बस पाँच-सात रुपये।"

"अच्छी बात है सात रुपये हम आपको दे देंगे।"

"तब ठीक है। हम तुम्हारा काम कर देंगे।"

"कब?"

"दीपावली आ रही है। बड़ा शुभ पर्व है। उसी दिन पूजा करेंगे?"

"दीपावली के दिन!"

"हाँ! हम तांत्रिकों के लिए दीपमालिका की अमावश्या बड़ी महत्वपूर्ण है। उस दिन जो अनुष्ठान किया जाता है, वह अवश्य सिद्ध होता है।"

"तो घर में ही करोगे।"

"नहीं गंगा-तट पर एकान्त में। शिवाबलि देनी होगी--वह घर में नहीं हो सकती।"

"शिवाबलि क्या?"

"अब यह तुम क्या करोगे पूछ के।"

"कुछ नहीं? जानना चाहते हैं।"

"किसी दिन साथ ले चलकर दिखा दें। शिवा श्रृगाल का रूप रखकर आती है और अपना भाग खा जाती है।"

"अच्छा!"