सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/१३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
-१२४-
 

खुश कर दिया। वाकई इनकी 'गोल्डेन जुबली' मनाई जानी चाहिए।"

"बात तो दूर की सोची इसने है---इसे बौखल तो क्या हुआ।"

"बड़ा बना हुआ है---इसे बौखल मत समझना।"

ब्रजनन्दन बोला---"तो क्या राय है आप लोगों की।"

"राय पक्की है, तैयारी शुरू हो जानी चाहिए। एक महीना काफी है।"

रायबहादुर साहब मन ही मन प्रसन्न होकर बोले---"मेरी सुवर्ण जुबली क्या मनाओगे।"

"आप मत बोलिये। यह हम लोगों का प्रोग्राम है।"

"अच्छा भई, अब न बोलूँगा, जो तुम लोगों की इच्छा हो करो।"

"कितना रुपया खर्च होगा।"

"यह तो अपनी समाई की बात है जितना चाहो खर्च कर दो।"

"कोई चिन्ता नहीं, हम लोग आपस में चन्दा कर लेंगे।"

रायबहादुर साहब बोल उठे---"यह बात गलत है जनाब! रुपया तो मेरा ही खर्च होगा। प्रबन्ध आप लोगों का।"

"वह सब हो जायगा।" दर साहब ने कहा।

"कितना रुपया खच होगा?" एडवोकेट महाशय ने पूछा।

"यह तो अपनी समाई की बात है, चाहे जितना खर्च कर दो।"

रायबहादुर साहब बोले---"पाँच हजार खर्च होगा?"

"पाँच हजार में बहुत बढ़िया हो जायगी।"

"तो मैं पाँच हजार का बजट स्वीकार करता हूँ।"

"वाह वा! फिर क्या है मजे ही मजे हैं।"

"भई काम बाँट लेना चाहिए।" ब्रजनन्दन ने कहा।

"हम लोग काम बाँट लेंगे। आप को अभी से एक काम सौंपा जाता है।"

"वह कौन सा?"

"रंडियाँ ठीक करना। जलसा भी तो होगा।"

"जलसा तो अवश्य होगा, परन्तु रंडियाँ ठीक करने का काम दर