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पृष्ठ:रघुवंश (अनुवाद).djvu/११७

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पाँचवाँ सर्ग।

तेरा हाथी का शरीर छूट जायगा और तुझे फिर अपना स्वाभाविक गन्धर्वरूप मिल जायगा। जिस दिन से मतङ्ग ऋषि ने यह शाप दिया उस दिन से आज तक मैं महाबलवान् इक्ष्वाकुवंशी अज के दर्शनों की प्रतीक्षा में था। आज कहीं आपने मुझे शाप से छुड़ा कर मेरी मनोरथ-सिद्धि की। अतएव आपने मुझ पर जो उपकार किया है उसका यदि में कुछ भी बदला न दूँ तो आपके प्रभाव से मुझे जो इस गन्धर्व-शरीर की फिर प्राप्ति हुई है वह व्यर्थ हो जायगी। प्रत्युपकार करने में असमर्थ मनुष्यों के लिए जीने की अपेक्षा मर जाना ही अच्छा है। मित्र, मेरे पास सम्मोहन नाम का एक अस्त्र है। उसका देवता गन्धर्व है। उसी की कृपा से यह अस्त्र मिलता है। इसे शत्रु पर चलाने और फिर अपने पास लौटा लेने के मन्त्र जुदे जुदे हैं। वे सब मुझे सिद्ध हैं। यह अस्त्र मैं आपको देता हूँ। लीजिए। इसमें यह बड़ा भारी गुण है कि इसे चलाने से शत्रुओं की प्राण-हानि हुए बिना ही चलाने वाले की जीत होती है। इससे शत्रु मूर्छित हो जाते हैं; उनमें युद्ध करने की शक्ति ही नहीं रह जाती। अतएव, इस शस्त्र का प्रयोगकर्त्ता अवश्य ही विजयी होता है। इस बात को आप अपने मन में हरगिज़ न आने दें कि आप ने तो मुझ पर बाण मारा और मैं आपको उसके बदले यह अस्त्र देने जाता है। इसमें लज्जा की कोई बात नहीं, क्योंकि मेरे मारने के लिए धनुष उठाने पर भी आपके मन में, क्षण भर के लिए, मुझ पर दया आ गई। इससे आपने मुझे मारा नहीं। मेरा मस्तक बाण से छेद कर ही मुझे आपने छोड़ दिया। इस कारण, इस अस्त्र को ले लेने के लिए मैं जो आपसे प्रार्थना कर रहा हूँ, उसे आपको मान लेना चाहिए। अपने मन को कठोर करके उसका तिरस्कार करना आपको उचित नहीं"।

चन्द्रमा के समान समस्त संसार को आनन्द देने वाले अज-कुमार ने गन्धर्व की इस प्रार्थना को मान लिया। उसने कहाः—"बहुत अच्छा, आपकी आज्ञा मुझे मान्य है। यह कह कर अज ने सोमसुता नर्म्मदा का पवित्र जल लेकर आचमन किया। फिर उसने उत्तर की ओर मुँह करके, शाप से छूटे हुए उस गन्धर्व से उस सम्मोहन-अस्त्र-सम्बन्धी मन्त्र ग्रहण कर लिये।

इस प्रकार, दैवयोग से, मार्ग में, जिस बात का कभी स्वप्न में भी ख़याल न था वह हो गई। अकस्मात् वे दोनों एक दूसरे के मित्र हो गये। इसके अनन्तर वह गन्धर्व तो कुबेर के उद्यान के पास वाले प्रदेश की तरफ़ चला गया, क्योंकि वह वहीं का रहने वाला था, और, अज-कुमार ने उस विदर्भ देश की राह ली जिसका राजा अपनी प्रजा का यथा-न्याय पालन करता था, और जहाँ की प्रजा ऐसे अच्छे राजा को पाकर, सब प्रकार सुखी थी।

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