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पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१०१

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रश्मि रेखा (२) भोली सहज लाज मोहकता निज नयनों में घोले आफर सुहरा दो मेरे हिय के सुकुमार फफोले आन कपा दो इस मूले की रसिक र नु की फाँसी मेरी इकठा को सुदरि डालो गलबहियों-सी क्वासि ? क्यासि ? प्यासी आँखों से बरस रही फुहियाँ सी आ जाओ मेरे उपवन में सजनि धूप छहियाँ सी झुक झुक झूम झूम खिल जाआ हृदय अस्थियाँ खोले आओ बलिहारी जाऊ तुम लो आज हिंडाले । मिला कारागार पानीपुर दिना १३ दिसम्बर १६३ }