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पृष्ठ:रसज्ञ रञ्जन.djvu/१२७

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त्याग। विवाहोत्तर = विवाह के बाद। नवोढत्व = नव विवाह। अन्तर्दर्शी = हृदय की बातों का ज्ञाता।

पृष्ठ ९२—आराध्य युग्म = पूज्य दंपति, सीता एवं राम। नाना पुराण॰ = तुलसीदास जी ने लिखा है कि मैं अपनी कथा भिन्न-भिन्न स्थानों से लेरहा हूँ, पर ऊर्मिला के विषय में वे भी वाल्मीकिके समान ही मौन हैं।

पृष्ठ ९३—साकेत = अयोध्या। उर्मिला का......है = "उत्तर रामचरित" में जिस प्रकार लक्ष्मण ने उर्म्मिला का चित्र हाथ से ढक लिया उसी प्रकार उसका चरित्र कवियों ने ढक रक्खा अर्थात् उसका वर्णन नहीं किया।

पृष्ठ ९४—भर्त्सना = झिड़कना।

पृष्ठ ९५—आवास = निवास स्थान।

पृष्ठ ९६—भुवनातिव्यापिनी = चौदह भुवनों में श्रेष्ठ। चाटुकारिता = खुशामद।

पृष्ठ ९७—उपायन = भेंट। तिरस्कारिणी विद्या = अदृश्य होने की विद्या। अनावृत्त = खुले हुए। स्थिति स्थान = जिस सगह वह खड़ा था। चरित्रदार्ढ्य = चरित्र की दृढ़ता।

पृष्ठ ९८—अनिर्वचनीय = जिसका कथन न हो सके। मन्मथ = कामदेव। अप्रतिम = मुग्ध। अभ्युत्थान = आदर प्रदर्शित करने के लिये खड़ा होना। धारासार = जल वर्षण। कुण्ठितकण्ठ = अवाक्। प्रेमपूर्ण........चाहिए = यदि मधुपर्क न बन पड़े तो मीठे वचनों से ही स्वागत करना धर्म है। मधुपर्क = शीतल तथा सुगन्धित पदार्थों से बना हुआ एक प्रकार का शरबत।

पृष्ठ ९९—आनन्दाश्रु.........चाहिए = जल के अभाव में प्रसन्नता सूचक आँसुओं से हो अर्घ्य देना चाहिए अर्थात् हर्ष प्रकट करना चाहिए। आप उसे............करें = आसन पर विराजें। शिरीषकलिका = सिरस के फूल बहुत कोमल होते हैं। बसन्त बीत......डाली = आप किस देश को शोभाहीन कर के छोड़ आए है, अर्थात् आपका आगमन कहाँ से हुआ है। समुद्र के साथ ............है = चन्द्र सदृश आपको जन्म देकर आपका वंश भी समुद्र के समान ही धन्य है। (चन्द्रमा