पृष्ठ:रसज्ञ रञ्जन.djvu/२७

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१-कवि-कर्तव्य
 

कल के कवियों में नहीं हो सकती? जान पड़ता है कि "अब के कवि खद्योत सम जहँ-तहँ करहि प्रकाश"—जिसने यह दोहा लिखा है उसको बड़ी दूर की सूझी है। बोल-चाल की भाषा में आज तक ऐसी कोई कविता नहीं[१] बनी, जिसका प्रचार "चन्द्रकान्ता" के समान साधारण पढ़े-लिखे लोगों में भी हुआ हो। सदोष होने पर भी इस उपन्यास के कारण पुरुषों और स्त्रियों में उपन्यास पढ़ने की रूचि उत्पन्न हुई है। इसी प्रकार जब बोल-चाल की भाषा की कविता को, या आजकल के और दूसरे पद्यों को साधारण लोग भी पढ़ने लगे, तब समझना चाहिये कि कविता और कवि लोकप्रिय हैं। आजकल की संस्कृत-भरी कविता का रचा जाना और भी अधिक हानिकारक है।

सारांश यह कि यदि आजकल की कवितामें शास्त्रोक्त गुणों को छोड़कर नीचे लिखे हुये गुण हो तो सम्भव है कि वह लोकप्रिय होगी—

(१) कविता में साधारण लोगों की अवस्था, विचार और मनोविकारों का वर्णन हो।

(२) उसमें धीरज, साहस, प्रेम और दया आदि गुणों के उदाहरण रहे।

(३) कल्पना सूक्ष्म और उपमादिक अलङ्कार गूढ़ न हो।

(४) भाषा सहज, स्वाभाविक और मनोहर हो।

(५) छन्द सीधा, परिचित, मुहावना और वर्णन के अनुकूल हो।

 

  1. यह सम्मान अब 'भारत-भारती' और 'जयद्रथ-वध' को मिल गया है।॥१९१८॥