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रसज्ञ रञ्जन
 

के लिए क्षेमेन्द्र के निर्दिष्ट साधनों को थोड़े में उल्लेख करते हैं।

कवि होने के लिए पाँच बातें अपेक्षित है। वे पाँच बातें ये हैं—(१) कवित्व शक्ति (२) शिक्षा (३) चमत्कारोत्पादन (४) गुण-दोष-ज्ञान (५) परिचय-चारुता।

अब इन पाँचों का संक्षिप्त विवेचन सुनिए।

कवित्व-शक्ति

किसी-किसी में कवित्व-शक्ति बीज-रूप से रहती है। उसे अंकुरित करना पड़ता है। जिसमें वह नहीं होती वह अच्छा कवि नहीं हो सकता। कवित्व-शक्ति को जागृति करने के दो उपाय है—दिव्य और पौरुषेय।

सरस्वती देवी के क्रियामातृ-का—मन्त्र जप करना उसकी मूर्त्ति का ध्यान करना और उसके यन्त्र का पूजन करना इत्यादि दिव्य उपाय है।

पौरुषेय उपाय यह है कि किसी अच्छे कवि को गुरू बना कर उससे यथाविधि काव्य-शास्त्र का अध्ययन करना।

कवि बनने की इच्छा से काव्य-शास्त्र का अध्ययन करने वाले शिष्य तीन प्रकार के होते हैं—अल्प-प्रत्यय-साध्य, कृच्छु-साध्य और असाध्य।

थोड़े ही अध्ययन से जो सफल-मनोरथ होजायँ वे अल्प-प्रयत्न-साध्य, अध्ययन में विशेष परिश्रम करने से जिन्हें इष्ट लाभ हो वे कृछ-साध्य, जो वरसो सिर पीटने पर भी कुछ न कर सकें वे असाध्य समझे जाते हैं।

अल्प-प्रयत्न-साध्य शिष्यों के कर्त्तव्य सुनिए।

ऐसे पुरुषों को चाहिए कि वे किसी अच्छे साहित्य ज्ञाता कवि से अध्ययन करे। जो केवल तार्किक या वैयाकरण हो उससे सदा दूर रहे। जो सरस-हृदय हो, स्वयं कवि हो, व्याक-