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कवि और कविता
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से, वह उस पर कविता करने के लिए विवश-सा होता जाता है। उसमें एक अलौकिक शक्ति पैदा हो जाती है। इसी शक्ति के बल से वह सजीव ही नहीं, निर्जीव चीजों तक का वर्णन ऐसे प्रभावोत्पादक ढंग से करता है कि यदि उन चीजों में बोलने की शक्ति होती तो ख़ुद वे भी इससे अच्छा वर्णन न कर सकती। जोश से यह भी मतलब नहीं कि कविता के शब्द ख़ूब ज़ोरदार और जोशीले हो। सम्भव है, शब्द ज़ोरदार न हो, पर जोश उनमें छिपा हुआ हो। धीमे शब्दों में भी जोश रह सकता है। और पढ़ने या सुनने वाले के हृदय पर चोट कर सकता है। परन्तु ऐसे शब्दों का प्रयोग करना ऐसे वैसे कवि का काम नहीं। जो लोग मोटी छुरी से तेज़ तलवार का काम लेना चाहते है, वही धीमे शब्दों में जोश भर सकते है।

सादगी, असलियत और जोश यदि ये तीनों गुण कविता में हों तो कहना ही क्या है। परन्तु बहुधा अच्छी कविता में भी इनमें से एक-आध गुण की कमी पाई जाती है। कभी-कभी देखा जाता है कि कविता में केवल जोश रहता है, सादगी और असलियत नहीं। कभी कभी सादगी और जोश पाये जाते हैं। असलियत नहीं। परन्तु बिना असलियत के जोश का होना बहुत कठिन है। अतएव कवि को असलियत का सबसे अधिक ध्यान रखना चाहिए।

अच्छी कविता की सबसे बड़ी परीक्षा यह है कि उसे सुनते ही लोग बोल उठे कि सच कहा। वही कवि सच्चे कवि हैं जिनकी कविता सुन कर लोगों के मुँह से सहसा यह उक्ति निकलती है। ऐसे कवि धन्य है, और जिस देश में ऐसे कवि पैदा होते हैं वह देश भी धन्य है। ऐसे कवियों की कविता चिरकाल तक जीवित रहती है।