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पृष्ठ:रसज्ञ रञ्जन.djvu/७०

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रसज्ञ-रञ्जन
 

कर रही है; कही कोई अपने प्रेम-पात्र के पास गई हुई सखी के लौटने में विलम्ब होने से कातर होकर आँसुओं की धारा से आँखों का काजल बहा रहा रही है!!! यही बातें विलक्षण उक्तियों के द्वारा, इस प्रकार की पुस्तकों में विस्तार पूर्वक लिखी गई हैं। सदाचरण का सत्यानाश करने के लिये या इससे भी बढ़ कर कोई युक्ति हो सकती है? युवकों को कुपथ पर ले जाने के लिये क्या इससे भी अधिक बलवती और कोई आकर्षण शक्ति हो सकती है? हमारे हिन्दी साहित्य में इस प्रकार की पुस्तकों का आधिक्य होना हानिकारक है, समाज के चरित्र की दुर्बलता का दिव्य-चिन्ह है। हमारी स्वल्प बुद्धिके अनुसार इस प्रकारकी पुस्तक का बनाना शीघ्र ही बन्द हो जाना चाहिये, और यही नहीं, किन्तु आजतक ऐसी-ऐसी जितनी इस विषय की दूषित पुस्तक बनी है उनका वितरण होना भी बन्द हो जाना चाहिए। इन पुस्तक के बिना साहित्यको कोई हानि नहीं पहुँचेगी; उलटा लाभ होगा। इसके न होने से भी समाज का कल्याण है। इनके न होनेसे ही नववयस्क मुग्धमति युवा-जन का कल्याण है। इनके ही इनके बनाने और बेचने वालों का कल्याण है।

जिस प्रकार नायिकाओं के अनेक भेद कहे गये है और भेदा तुसार उनकी अनेक चेष्टाएँ वर्णन की गई है, उसी प्रकार पुरूष के भी भेद और चेष्टा-वैक्षण्य का वर्णन किया जा सकता है। जब नवोढ़ा और विश्रव्य नवोढ़ा नयिका होती है तब नवोढ़ और विश्रव्य-नवोढ़ नायक भी हो सकते है। वासकसज्जा, विप्रलब्धा और कलहान्तरिता नायिकाके समान वा कमज्ज, विप्रलव्ध और कलहान्तरित नायक होने में क्या आपत्ति हो सकती है? कोई नहीं। क्या स्त्री ही अज्ञात-यौवना होती है? पुरुष अज्ञात-यौवन नहीं होता "रसमंजरी" वाले कहते हैं कि स्वभाव