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पृष्ठ:रसज्ञ रञ्जन.djvu/८४

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रसज्ञ-रञ्जन
 


अर्थात् जल-मिश्रित दूध के बर्तन में हंस जब अपनी चोंच डालता है, तब मुँख गत रस-विशेष का योग होते ही जल और दूध अलग-अलग हो जाते हैं, या अलग अलग जान पड़ते हैं।

इस पिछले अवतरण से यह सूचित होता है कि किसी-किसी की राय में हंस के मुँह में एक प्रकार का रस होता है। उस रस का मेल होने से पानी और दूध अलग-अलग हो जाते हैं। यदि इस रस में खट्टापन हो तो दूध का जम कर दही हो जाना सम्भव है। पर इसके लिए कुछ समय चाहिए। क्या हंस की चोंच दूध के भीतर पहुँचते ही दूध जम जाता होगा? सम्भव है, जम जाता हो, पर यह बात समझ में नहीं आती कि पात्र में भरे हुए जल-मिश्रित दूध में से जल को अलग करके दूध को हंस किस तरह पी लेता है। अध्यापक लांगमैन की परीक्षा से तो यह बात सिद्ध नहीं हुई।

अमेरिका के एक और विद्वान् ने हंस के नीर-क्षीर-विषयक प्रवाद का विचार किया है। आपका नाम है डाक्टर काव्मस आप वाशिगटन में रहते है। आपका मत कि हंस के मुँह की बनावट ऐसी है कि जब वह कोई चीज़ खाता है, तब उसका रसमय पतला अंश उसके मुँह से बाहर गिर पड़ता है और कड़ा अंश पेट में चला जाता है। आपके मत में दूध से मतलब इसी कड़े अंश से है! बहुत रसीली चीज़ के कठोर अंश का बाहर वह आना सम्भव ज़रूर है पर किसी चीज़ के कठोर अंश का अर्थ दूध करना हास्यास्पद है।

अच्छा हंस रहते कहाँ हैं और खाते क्या है? हंस बहुत करके इसी देश में पाये जाते है। उनका सबसे प्रिय निवास्थान मानसरोवर है। यह सरोवर हिमालय पर्वत के ऊपर है। सुनते हैं, यह तालाब बहुत सुन्दर है। इसका जल मोती के समान निर्मल है। यही हंस अधिकता से रहते हैं और यहीं वे