सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/१७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अष्टम प्रभाव १७५ ताल तें बागिन बाग ते तालनि ताल तमाल की जात नसीवें। कैसी हैं केसव वे जुवती सुनि ऐसी दसा पिय की पल जीव ।३३। शब्दार्थ-मेघनि ज्यों० = जैसे बादल हंसों को नहीं देखता ( वर्षा पाने पर हंस मानसरोवर चले जाते हैं ) वैसे ही वे हँसकर ( प्रसन्नतापूर्वक ) हंसों को नहीं देखते । हंसनि ज्यों० = जैसे हंस बादल का रूप (रस) पान नहीं करते वैसे ही वे भी बादलों को नहीं देखते । कंजनि ज्यों- जैसे कमल मन से चंद्रमा को नहीं चाहते वैसे ही वे भी चंद्रमा को नहीं देखते। चंद ज्यों % जैसे चंद्रमा किसी प्रकार'कमलों की नहीं छूता (कमल चंद्रोदय होने पर बंद हो जाते हैं) वैसे ही वे भी कमलों को नहीं छूते । न छीवै = नहीं छूते । ताल तें० = न ताल से बाग में आते हैं और न बाग से ताल की अोर ( जैसे पहले जाया आया करते थे, वे अब सुखद नहीं लगते ) । ताल तमाल की० = जहाँ ताल और तमाल के वृक्ष हैं वहाँ ( संकेतस्थल समझकर मारे क्लेश के ) जाते ही नहीं। सीवै= सीमा में, निकट । पल = क्षण भर भी ! जी4 = जीती हैं। श्रीकृष्णजू को प्रकाश उद्वेग, यथा-( सवैया) (३१५) सोचि सखी भरि लेत बिलोचन, कॉपत देखत फूले तमालहि । भूले से डोलत बोलत नाहिन बाग गए किधौं तेरे ही तालहि । देख्यो जौ चाहति देखि न आवति ऐसे में हौं न दिखैहौंरीलालहि। आजु कहा दिखसाध लगी जब देख्यो सुहाइ कछू न गुपालहि ॥३४॥ शब्दार्थ-सोचिः = स्मरण करके । बिलोचन =दोनो नेत्र । कांपत =फूले तमालों को देखकर वे कांपने लगते हैं। भूले० = भूले से फिरते रहते हैं, चुप- चाप । बाग गए० = ( कभी ) तेरे बाग या (कभी) ताल पर जाया करते हैं। देख्यो जु० = यदि उन्हें देखना ही चाहती है तो देख क्यों नहीं आती ? मैं तो ऐसी दशा में लाल को दिखलाने स्वयम् न जाऊँगी। दिखसाध= देखने की उत्कंठा । जब देख्यो = जब गोपाल को कोई वस्तु देखने पर अच्छी नहीं लग रही है तब तुझे देखने की लालसा जगी हैं । अथ प्रलाप-लक्षण-(दोहा) (३१६) भँवत रहै मन भौंर ज्यों, है तन-मन-परिताप । बचन कहै प्रिय पक्ष सों, तासों कहत प्रलाप ३५॥ शब्दार्थ-परिताप = ( परि + ताप ) अत्यंत ताप । वचन कहै-प्रिय पक्ष की ही बातें कहे, प्रियतम की ही बातें करे । ३४...को लेवन । तेरै हो-तेरई ! जो-जु दिशा-निराळ। ३५-ॐवत-भ्रमता।