सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( २० ) ऊपर जहाँ गुणन का चिह्न (x ) है वहाँ 'शृंगारतिलक' और 'रसिक- प्रिया' में मेल नहीं है । 'शृंगारतिलक' की समस्त बातें 'रसिकप्रिया' में नहीं गृहीत की गई हैं । जहाँ तारा-चिह्न (*) है वहाँ कहीं अधिक और कहीं कम पार्थक्य है । 'शृंगारतिलक' में तीन परिच्छेद हैं। पहले परिच्छेद में ६५, दूसरे में ७० तथा तीसरे में ५७ छंद हैं। इतने लक्षण के छंद हैं । उदाहरणों की संख्या इनमें नहीं हैं। उदाहरण उसमें नाम ही दिए गए हैं, केवल १४० । प्रकाश-प्रच्छन्न भेद सभी रसों में होता है। रसिकप्रिया में केवल शृंगार के अंतर्गत इन दोनों भेदों के उदाहरण दिए गए हैं। शृंगारतिलक में इन भेदों के उदाहरण दिए ही नहीं गए हैं। यहाँ प्रकाश-प्रच्छन्न का लक्षण भी नहीं दिया गया है। मुग्धा-मध्या-प्रौढ़ा के जितने विशेषण दिए गए हैं उनका विवेचन वहाँ नहीं है। वहाँ लक्षणों के अनंतर कुछ उदाहरण भी यथास्थान संकलित कर दिए गए हैं तथापि विस्तार नहीं है। रसिकप्रिया में प्रत्येक विषय का लक्षण और उदाहरण देकर पूरा विस्तार किया गया है । रसिकप्रिया में नायक श्रीकृष्ण माने गए हैं, साथ ही नायिका राधाजी या प्रियाजू हैं । इसका परिणाम यह हुआ है कि सामान्या का विवेचन केशवदास ने परित्यक्त कर दिया । भक्ति के विभिन्न संप्रदायों में से कुछ में राधिका का परकीयाभाव भी मान्य है । इसलिए उसका विचार केशव ने नहीं छोड़ा, फिर भी परकीया का विस्तृत विवेचन करने और उदाहरण देने से वे विरत हो रहे हैं । शृंगार का वर्णन चाहे रसिकप्रिया में बहिरंग भी यथास्थान आया हो, चाहे उसमें शास्त्रीय पद्धति की पूर्णता के लिए सुरतांत-वर्णन भी रखे गए हों, पर सामाजिक मर्यादा का ध्यान रखकर उसमें बहुत से अनभीप्सित वर्णन परित्यक्त कर दिए गए हैं। जिन केशव की शृंगारी प्रवृत्ति की कुत्सा की जाती हैं उन्होंने सामाजिक दृष्टि से शृंगार के अनपेक्षित प्रसंगों का परित्याग किया है । इसकी साखी उनकी रसिकप्रिया भरती है। ऐसे प्रसंग उन्होंने परंपरा में स्वीकृत होते हुए, आधार-ग्रंथ में वर्णित होते हुए छोड़े हैं। इसलिए त्याग प्रयत्नपूर्वक है । यह भी कहा जाता है कि केशव की प्रवृत्ति दरवारी थी। उन्होंने राज- बिलास का वर्णन करने का विशेष प्रयास किया है। पर रसविवेचन में उन्होंने राजकीय प्रवृत्तियों का सर्वत्र अवलंबन नहीं किया है। शास्त्रविवेजन में जीवन के सभी पक्षों का आकलन किया जाता रहा है । वहाँ संपन्न जीवन के अधिक विवरण बलात्कृत नहीं हैं, विषयापेक्षा से संकलित हैं। केशव ने इस विषय में रावा-रंक को एक ही माना-है-