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पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/२२०

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२२४ रसिकप्रिया सूचना-'चेरिन की चेरी' कहने से जनी की उक्ति का पता चलता है । नाइनि को वचन राधिका सों, यथा-( सवैया ) (४१८) अब ही तौ गए उठि पौरहूँ लौं न पै बोलन जाहिरी पीछहीं लागें। करिहौ तब कैसी पराए जु ढोटहि छैहै कछू निसिद्योस के जागें। जौ न रह्यो परै केसव कैसहुँ देखत हो मुख स्याम सभागें। देती हौ जान क्यों राखत काहे न पारसीयै करि आँखिन आगें।७। शब्दार्थ-पौरहूँ लौंहार तक भी। पारसी = (सं० आदर्श) दर्पण । आरसीय करि आँखिन आगे - क्यों नहीं दर्पण ही बनाकर नेत्रों के सामने रख लेती। भावार्थ-प्रभो तो द्वार तक भी नहीं गए कि तू उनसे बोलने ( बातें करने ) के लिए पीछे पीछे चल पड़ी। पराए लड़के को यदि रातदिन (तेरे साथ ) जागते रहने से कुछ हो जाय तो क्या करेगी? यदि भाग्यवान् श्याम का मुंह देखे बिना तुझसे किसी प्रकार रहा नहीं जाता तो उन्हें जाने ही क्यों देती है ? क्यों नहीं उन्हें दर्पण बनाकर आँखों के आगे रख लेती ? सूचना-यहाँ 'पारसी' की बात कहने से नायन की उक्ति जान पड़ती है। नाइन को वचन कृष्ण सों, यथा-( सवैया ) (४१६) बड़ी जिय लाज, बड़ो डर पाली बड़ो लहुरीयौ चलें चित लोने। बड़ी बड़ी आँख बड़ी छबि सों चितवै बड़ी बेर बड़ो सुख दीने । बड़े ही बिचार बड़ी रुचि केसव क्योंहूँ मिलै तौ मिलै हमही ने । बड़ीनिहूँ सों तो बड़े दुख बोले, इते बड़े मान बड़ो मन कीने ।। शब्दार्थ-बेर = देर । हमही ने = हमको, हमसे, हमीं से। भावार्थ-(आप जिससे बातें करने को कहते हैं ) उसके हृदय में बड़ी लज्जा है, बड़ा डर है और उसके चित्त के अनुकूल उसकी जेठी और लहुरी सभी चलती हैं। उसकी बड़ी बड़ी आँखें हैं, वह बड़ी शोभा के साथ अत्यंत सुख देती हुई देर तक देखा करती है। उसके विचार बड़े हैं, रुचि ( इच्छा, प्रकृति ) भी बड़ी है। यदि कहीं हमसे भी मिलती है तो बड़ी कठिनाई से उससे कहीं भेंट हो पाती है। वह तो अपनी बड़ी बूढ़ियों से भी कठिनाई से बोलती है । इतना बड़ा संमान होने से वह अपना मन भी बड़ा किए हुए है ( उससे बातें करना हँसो खेल नहीं है)। ७-उठि-नहि, पुनि । न पै-सु तौ। री-तू । करिहो करिहैं, करै। कैसी- कैसे । पराएजु-पराएहि । देखत ही-देखे बिना सुख । देतो-तो देति ।- बड़ो०-आप बड़े बड़ी चितवै हरि बोलत काहे से बोल सो होने। बड़े हो - बड़ी सब मांति बड़ो बुधि केसच बोलत बोल बड़े रसभीने । मिले-मिलो। तो मिले-जो कह, सु बड़ी । इते-इतो।