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पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/२७

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कमला कमलाकर। ( २७ ) के अनुकूल माना जाए तो इसका अर्थ 'काम' करने में बाधा है। तब इसका अर्थ 'अशरीरी रस-भाव' करना चाहिए। पर केशव ने इसके अनंतर आलंबन- स्थान और उद्दीपन का जो वर्णन किया है वहाँ केवल शृंगाररस के ही आलं- बन-उद्दीपन कथित हैं। इसलिए जान पड़ता है कि इन्होंने 'काम' अर्थ में ही इसका व्यवहार किया है । प्रालंबनस्थान-वर्णन भी ध्यान देने योग्य है- दंपति जोबन रूप जाति लच्छनजुत सखिजन । कोकिल कलित बसंत फूल फल दल अति उपबन । जलचर जलजुत अमल कमल चातक मोर सुसब्द तड़ित धनु अंबुद अंबर । सुभ सेज दीप सौगंध गृह पान गान परिधान मनि । नव नृत्यमेव बीनादि रव प्रालंबन केसव बरनि ।। इसमें 'दंपति' तो अवश्य शृंगाररस के आलंबन हैं, पर सखीजन, कोकि- लादि की गणना उद्दीपन में ही की जाती है । उद्दीपन दो प्रकार के होते हैं- संबद्ध और तटस्थ । पालंबन से संबद्ध उद्दीपन के अंतर्गत कुछ तो शारीरिक चेष्टाएँ होती हैं, कुछ शरीर की साजसज्जा, कुछ शय्यादि उपकरण, कुछ सहायक सखी आदि । तटस्थ के अंतर्गत प्राकृतिक स्थिति होती है। इनमें से केशव ने शारीरिक चेष्टा को ही उद्दीपन कहा है- अवलोकन प्रालाप परिरंभन नख-रद-दान । चुंबनादि उद्दीप हैं मर्दन परस प्रवान ॥६७ पर अन्य सभी उद्दीपनों को इन्होंने प्रालंबन ही कहा है। इसका कारण कदाचित् यह है कि प्रकृत आलंबन के अतिरिक्त स्थितिभेद से ये भी आलंबन हो सकते हैं । इन्हें उद्दीपन कह देने से इनकी गणना फिर आलंबन के अंतर्गत न हो सकती। पर ऐसा कर देने से इनका उद्दीपन होना स्पष्ट लक्षित नहीं होता। हिंदी में प्राकृतिक दृश्य पालंबन होते हैं यह केशवदास ने ही कहा है । यह कथन कम महत्त्व का नहीं है । अनुभाव का लक्षण यह है- प्रालंबन उद्दीप के जो अनुकरन ते कहिये अनुभाव सब दंपत्ति प्रीति-विधान ॥६८ इसमें 'अनुकरण' शब्द 'अनुकृति' नहीं 'अनुगमन' अर्थ में प्रयुक्त जान पड़ता है। अनुभाव शब्द के दो अर्थ किए जाते हैं जो भावादि का अनुभव कराते हों अथवा जो भाव के पीछे प्रकट होते हों। यहाँ दूसरा अर्थ लिया गया है। बखान ।