इनको कैसे स्थान दिया गया यह कहा नहीं जा सकता। यह अपराध या तो स्वयम् अहमद ने किया है या किसी उनके भक्त ने रहीम का नाम निकाल कर उनके नाम से इन्हें लिख दिया है।
वृन्द के दो दोहों में भी रहीम के दोहों के भाव मिलते हैं । ये भी रहीम के परवर्ती कवि हैं।
ससि की सीतल चान्दनी,सुन्दर सबहिं सुहाय ।
लगै चोर चित भैं लटी,घटि रहीम मन अाय ॥
जासों जाको हित सधै, सोई ताहि सुहात ।
चोर न प्यारी चाँदनी, जैसी कारी रात ॥
चन्द्रमा की शीतलता सब को सुख-प्रद् और भली मालूम होती है;वह भी,चोर के मन में छल होने के कारण,उसे बुरी लगती है । यही रहीम के दोहे का भाव है । वृन्द ने अपने दोहे में कुछ परिवर्तन कर दिया है । परिवर्तन क्या,उन्होंने अधिक स्पष्टता कर दी है । वृन्द ने शीतल चान्दनी के स्थान पर उसी का समभाव हित-साधना ले लिया है । दूसरे चरण का अर्धाश तो एकही है। बाकी अंश में वृन्द ने एक विशेषता करदी है । उन्होंने चोर की हित-साधक कारी रात की प्रियता दिखा दी है ।