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पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२३०

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नारायणदास की इस बात को सुनकर उस स्त्री ने उसकी ओर देखा और उसकी विराट मूर्ति को देखकर वह भयभीत हो उठी। क्षमा मांगने के लिये उसने कुछ कहना चाहा, उसी समय नारायणदास ने कहा-"डरो नहीं, तुम जो कह रही थी उसे फिर कहो।" भयभीत हो जाने के कारण वह स्त्री कुछ कह न सकी। उसके हाथ में मजबूत लोहे की एक मोटी छड़ थी। नारायणदास ने उसके हाथ से उस छड़ को ले लिया और उसे पकड़कर इस प्रकार झुकाया कि वह गले में पहनने की एक हँसली बन गयी। नारायणदास ने उस हँसली को गले में पहनाकर उसके दोनों किनारे एक दूसरे के साथ इस प्रकार मिला दिये कि जिससे वह सिर से उतर न सकती थी। नारायणदास ने उसके गले में उस हंसली को पहनाकर कहा"क्या तुम्हें कोई दूसरा आदमी ऐसा न मिलेगा जो तुम्हारे गले से इसको निकाल सके? यदि मिल सके तो इसे निकलवा लेना, अन्यथा मेरे चित्तौड़ से लौटने के समय तक तुम इसे पहने रहना।" पठानों की सेना ने चित्तौड़ को इस प्रकार घेर लिया था कि उसका कोई भी मनुष्य बाहर आ-जा नहीं सकता था। पठानों के इस घेरे से राणा के सामने बड़ा संकट पैदा हो गया था। पठार के गूढ़ मार्ग से होकर अपने पाँच सौ शूरवीरों के साथ रात्रि के समय नारायणदास ने अकस्मात् पठानों के शिविर में प्रवेश किया और भीपण आक्रमण के साथ पठानों का संहार करना आरम्भ कर दिया। इसी समय आक्रमणकारी पठानो के सेनापति के सामने पहुँच गये। हाड़ा राजपूतों के संहार से भयभीत होकर पठान लोग शिविर से बाहर की तरफ भागने लगे। इस भगदड़ में पठानों का भयानक रूप से संहार हुआ। वहुत-से लोग मारे गये और जो शेप वचे, वे सबके सब शिविर से भाग गये। चित्तौड़ के राणा ने प्रातःकाल होते ही सुना कि बूंदी से राव नारायणदास ने अपनी सेना के साथ आकर रात में पठानों का संहार किया है और बचे हुए पठान अपने प्राण लेकर भाग गये हैं। यह जानकर राणा रायमल्ल चित्तौड़ से बाहर निकला और बड़े सम्मान के साथ नारायणदास से मिलकर उसने अपनी प्रसन्नता प्रकट की। इसी समय नारायणदास को लिये हुए रायमल्ल चित्तौड़ में पहुंचा। जय-जयकार के साथ चित्तौड़ की राजधानी में नगाड़े बजाये गये। यह बात किसी से छिपी न रही कि बूंदी के राजा नारायणदास के केवल पाँच सौ हाड़ा राजपूतों ने पठानों की सेना को पराजित किया। सम्पूर्ण चित्तौड़ में नारायणदास की प्रशंसा होने लगी। राणा के महल में नारायणदास को सम्मान देने के लिये एक बड़ी सभा की गयी। उस सभा में मेवाड़ के सभी सामन्तों ने आकर बूंदी के नारायणदास के प्रति अपना सम्मान प्रकट किया। राणा के महल से नारायणदास को देखने के लिये परदे में स्त्रियाँ आयीं और सभी ने उसकी विराट मूर्ति को देखा। सभी ने प्रसन्नता प्रकट की। ___ अफीम का सेवन करने की आदत यद्यपि नारायणदास की बहुत बढ़ गयी थी, फिर भी उसके भीमकाय शरीर को देखकर सभी लोग दंग रह जाते थे। राणा के भाई की लड़की ने नारायणदास को देखा। सभा में उसकी जो प्रशंसा की गयी, उसको उसने सुना। वह अत्यन्त प्रभावित हुई और उसके साथ अपना विवाह करने के लिये उसने अपनी सखियों से कहा। दूसरे दिन राणा ने अपनी भतीजी के इस निर्णय को सुना। उसने प्रसन्नता के साथ भतीजी के निर्णय 222