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पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२७६

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सब को इस विषय में सोच समझ कर काम करना चाहिए। मैं छत्रसाल को गोद लिए जाने के 'पक्ष में नहीं हूँ। छत्रसाल का पिता वृद्ध अजीत सिंह अभी तक मौजूद है। लड़के को सिंहासन पर विठा कर पिता को अधीन बना कर प्रजा के समान रखना किसी प्रकार न्यायपूर्ण नहीं है। इसलिए अजीत सिंह को ही सिंहासन पर बैठने का अधिकार मिलना चाहिए।" किसी ने हिम्मत सिंह झाला की बात का विरोध न किया। इसलिए सेनापति के प्रस्ताव के अनुसार अजीत सिंह कोटा के राज सिंहासन पर विटाया गया। ढाई वर्ष के बाद अजीत सिंह की मृत्यु हो गयी। उसके तीन लड़के थे-छत्रसाल, गुमान सिंह और राज सिंह । अजीत सिंह की मृत्यु हो जाने के पश्चात् उसका बड़ा लड़का छत्रसाल सिंहासन पर बैठा। प्रसिद्ध हिम्मत सिंह झाला की भी मृत्यु हो चुकी थी। इसलिए उसके स्थान पर उसका भतीजा जालिम सिंह सेनापति बनाया गया। ___ इन्ही दिनो में आमेर का राजा ईश्वरी सिंह आत्म-हत्या करके मर गया था। उसके स्थान पर माधव सिंह सिंहासन पर बैठा। उसने बूंदी और कोटा राज्य पर आक्रमण करने की तैयारी की। इन दिनों में अब्दाली के आक्रमण से मराठों की शक्तियाँ कमजोर पड़ गयी थीं। इसलिए कछवाहा वंश के राजपूत मराठों से निर्भीक हो गये थे। सन् 1761 ईसवी में माधव सिह आमेर की एक विशाल सेना लेकर हाड़ौती राज्य की तरफ रवाना हुआ और उनियारा पर आक्रमण करके उसने उस पर अधिकार कर लिया। इसके बाद उसने लाखरी में जाकर मराठो को पराजित किया और वहाँ पर उसने अधिकार कर लिया। इसके बाद वह पालीघाट पर पहुंचा। सुलतानपुर का हाड़ावशी सामन्त वहाँ का अधिकारी था। माधव सिंह ने आक्रमण करके उसे पराजित किया और पालीघाट पर भी उसने अधिकार कर लिया। मुलतानपुर का सामन्त अपने परिवार के साथ उस युद्ध में मारा गया। विजयी माधव सिंह इसके बाद आगे बढ़ा । झटवाड़ा नामक स्थान पर हाड़ा वंश के पाँच हजार राजपूत उसके साथ युद्ध करने के लिए तैयार थे। आमेर की सेना ने उन हाड़ा राजपूतो पर आक्रमण किया। आमेर की सेना के मुकाविले में हाड़ा राजपूतों की संख्या बहुत थोड़ी थी। फिर भी उन लोगों ने बड़ी वीरता के साथ युद्ध किया। इसी अवसर पर कांटा राज्य के सेनापति जालिम सिंह ने राजनीति से काम लिया। उसकी अवस्था इक्कीस वर्ष की थी। उसने अपनी सेना लेकर उस युद्ध में प्रवेश किया और उसने आमेर की सेना के साथ बड़े साहस से युद्ध करना आरम्भ किया। मराठा सेनापति मल्हारराव होलकर इस युद्ध को कुछ दूरी पर रह कर देख रहा था। वह पानीपत के युद्ध के बाद निर्वल पड गया था। इसीलिए वह युद्ध मे किसी तरह शामिल नहीं हुआ था। जालिम सिंह ने जब माधव सिंह को विजयी होता हुआ देखा तो वह अपने घोड़े पर तेजी के साथ होलकर के पास गया और उससे उसने कहा : "यदि आप इस युद्ध में किसी पक्ष का साथ नहीं देना चाहते तो अपनी सेना लेकर माधव सिंह के शिविर को लूट कर लाभ उठा सकते हैं। यह एक अवसर आपके सामने है।" मल्हार राव होलकर ने जालिम सिंह की इस बात को स्वीकार कर लिया। शिविर मे होलकर की सेना के लूट करते ही युद्ध मे आमेर की सेना घबरा उठी और वह भयभीत होकर 270