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पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३०३

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अध्याय-68 झाला जालिमसिंह की राज्य व्यवस्था जालिम सिंह के शासनकाल का जो वर्णन किया है, उसको दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-राज्य का वाहरी विभाग और भीतरी विभाग। अपने सुभीते के लिए मैंने उसके शासन के दो विभाग किये हैं। कोटा राज्य भारतवर्ष के मध्य में बसा हुआ है। बहुत दिनों तक कोटा राज्य के आस-पास के राज्यों मे अनेक प्रकार के अत्याचार और विनाश होते रहे। आक्रमणकारियों ने उन राज्यों मे जाकर सभी प्रकार के अन्याय किये, उनको लूटा और उनका विध्वंश किया। कोटा राज्य की सम्पत्ति ने भी उन आक्रमणकारियों को अपनी ओर आकर्षित किया और उन लुटेरों ने इस राज्य पर भी आक्रमण करने की तैयारियों कीं। परन्तु जालिम सिंह ने कोटा राज्य में इस प्रकार का शासन आरम्भ किया कि आधी शताब्दी तक लुटेरे मराठो को उसके राज्य की तरफ आगे बढ़ने का साहस न हुआ। यद्यपि इस दीर्घकाल में राजस्थान के लगभग सभी राज्य लूटे गये, उनका विनाश हुआ और अनेक प्रकार की विपदाओं का उनको सामना करना पड़ा। परन्तु कोटा का राज्य उस प्रकार के विनाश से बचा रहा। इसका कारण जालिम सिंह का शासन था, जिसको उसने अपनी पच्चीस वर्ष की अवस्था से आरम्भ किया था और बयासी वर्ष की आयु तक सफलतापूर्वक चलाया। राजस्थान के सभी राजाओं के साथ जालिम सिंह के सम्बन्ध थे। उसने बड़ी बुद्धिमानी के साथ सवसे अपने सम्वन्ध जोड़ रखे थे। प्रत्येक राजा के दरबार में उसका एक प्रतिनिधि रहता था। अपने प्रतिनिधियों का चुनाव वह बड़ी बुद्धिमानी के साथ करता था। उसका जो प्रतिनिधि जिस राज्य में रहता था, वहाँ की परिस्थितियों से वह जालिम सिंह को सदा परिचित कराता रहता था। यह कई बार लिखा जा चुका है कि जालिम सिंह दूरदर्शी और राजनीति कुशल था। आवश्यकता पड़ने पर वह सभी प्रकार का व्यवहार कर लेता था और विरोधियो को भी एक बार अपना मित्र बना लेना वह खूब जानता था। उसने लुटेरे मराठों और पिण्डारी लोगों के सेनापतियों के साथ भी चाचा और भतीजे के सम्बन्ध बना रखे थे। किसी भी अवस्था में जालिम सिंह अपने उद्देश्य को सफल बनाने के लिए सभी प्रकार के दाँव-पेंच जानता था। उसकी सफलता का बहुत कुछ यही कारण था। ___जालिम सिंह स्वभाव से कठोर और क्रोधी था। परन्तु समय और आवश्यकता के अनुसार वह अपने आपको सहज ही बदल देता था। वहुत स्वाभिमानी होने पर भी वह जरूरत के अनुसार विनम्र बन जाता था। वह प्रभावशाली पत्र लिखना और वातचीत करना भलीभाँति जानता था। उसमें यह गुण था कि बहुत विनम्र होने पर भी वह स्वाभिमान से काम लेता 297