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पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३१७

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सिंह और गोवर्धनदास में विद्रोह पैदा कराने में सफलता प्राप्त की। उसने गोवर्धनदास को समझा दिया कि जो संधि पहले स्वीकृत हुई थी, वह सही थी। लेकिन माधवसिंह और उसके उत्तराधिकारियों की इस राज्य में सत्ता बनाये रखने के लिए अंग्रेज प्रतिनिधियों ने तुम्हारे साथ अन्याय किया है। यद्यपि 26 दिसम्बर को स्वीकृत होने वाली संधि में इस प्रकार का कोई जिक्र नहीं था। लेकिन पोलिटिकल एजेन्ट के पक्षपात करने से माधव सिंह को यह महानता दी गयी है। पृथ्वीसिंह के इन तर्कों ने गोवर्धनदास को माधवसिंह और पोलिटिकल एजन्ट के प्रति विद्रोही वनाने का काम किया। इसी प्रकार महाराव किशोर सिंह को भी समझा कर विदोही बनाया गया। उसको भली प्रकार इस बात का विश्वास कराया गया कि 2 दिसम्बर को जो संधि मंजूर हुई थी, उसके अनुसार राज राणा जालिम सिंह और उसके अधिकारियों को शासन का अधिकार नहीं दिया गया था। इसलिए स्वर्गीय महाराव के बाद राज राणा का अधिकार समाप्त हो गया था। इस दशा में आप अंग्रेजी राज्य से इस वात की प्रार्थना कीजिए कि पूर्व स्वीकृत संधि के अनुसार काम किया जाये। क्योंकि मूल सन्धि की दसवीं शर्त में लिखा है कि कोटा राज्य के पूर्ण शासन का अधिकार महाराव उम्मेद सिंह और उसके उत्तराधिकारियों को होगा। पूर्व की स्वीकृत संधि में महाराव उम्मेद सिंह और अंग्रेजी सरकार की तरफ से हस्ताक्षर हुये हैं और दोनों की मोहरें लगी हुई है। परन्तु वाद की दो शर्ते जो शामिल की गयी हैं, उनमें न तो स्वर्गीय महाराव के हस्ताक्षर हैं और न उन शर्तों की महाराव को जानकारी ही थी। ____ कोटा राज्य में आरम्भ से ही कुछ लोग-जिनमें सामन्त भी शामिल थे और जिनके उल्लेख पहले किये जा चुके हैं-विरोधी थे। उन्होंने इस प्रकार के पड़यंत्रों की रचना करके और विरोधी प्रचार करके गोवर्धनदास को उसके पिता का विरोधी बना दिया था। साथ ही महाराव किशोर सिंह को जालिम सिंह के विपरीत काम करने के लिए तैयार कर दिया था। राज्य की इस परिस्थिति का भली प्रकार अध्ययन करके मैंने दूरदर्शिता से काम लिया और विरोधी पड़यंत्रों की तरफ ध्यान न देकर मैंने नवीन महाराव किशोर सिंह को विश्वास दिलाने की पूरी चेष्टा की कि मैं आपकी मयांदा को सुरक्षित रखने के लिए पूरा प्रयत्न करूँगा, लेकिन राज राणा जालिम सिंह के अधिकारों के प्रति अवहेलना करने की में कोई प्रतिज्ञा नहीं करता। मेरी बात से प्रभावित होकर किशोर सिंह ने कहा : "मैं आँख मूंद कर आपकी मित्रता पर विश्वास करता हूँ।" पृथ्वी सिंह ने भी इसी प्रकार का कुछ भाव प्रकट किया। लेकिन वहाँ पर जो सामन्त उपस्थित थे, वे सब शान्त बैठे रहे। किसी ने उस समय कुछ नहीं कहा। विरोधी परिस्थितियों को शांत देखकर मैंने किशोर सिंह और जालिम सिंह में फिर से सद्भाव पैदा करने की कोशिश की। कोटा के दुर्ग में राज्य के श्रेष्ठ व्यक्तियों को आमन्त्रित करके एक बैठक की गई और किशोर सिंह को राज सिंहासन पर विठाने का निश्चय किया गया। उस समय पोलिटिकल एजेन्ट की हैसियत से मैंने अपने भावों को प्रकट करते हुए कहा:"मैं इस राज्य का शुभचितंक हूँ और महाराव किशोर सिंह का सभी प्रकार कल्याण चाहता हूँ। मैं आशा करता हूँ कि वर्तमान संकटपूर्ण परिस्थितियों में महाराव किशोर सिंह के द्वारा ऐसा कोई कार्य न होगा, जिससे इस राज्य को और हाड़ा राजवंश के सम्मान को किसी प्रकार की क्षति पहुँच सके। महाराव को मांच समझकर प्रत्येक कार्य करना चाहिये और अपने 311