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पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३४९

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कारण स्थान अत्यन्त प्रिय मालूम होता है। उस स्थान से मारवाड़ जाने के लिए एक मार्ग दिखायी देता है। इस मन्दिर में चारो ओर स्तम्भ बने हुए है और उन स्तम्भों से मन्दिर के भीतर के सभी स्थल और दृश्य आसानी से देखने में आते हैं। टिभोली के मन्दिर की तरह इनका निर्माण हुआ है। मैंने शिखर के ऊपर जाकर इस मन्दिर के टूटे-फूटे भागों को देखा। मेवाड़ के प्रसिद्ध पृथ्वीराज और उसकी पत्नी तारावाई की भस्म के ढेर का भी मैंने अवलोकन किया। उस ढेर को देखकर पृथ्वीराज के जीवन की बहुत-सी बातें मेरी आँखो के सामने घूमने लगी। ताराबाई बदनौर के राव सुरतान की लड़की थी। राव सुरतान सोलंकी राजपूतों के बलहर राजवंश मे पैदा हुआ था। सुरतान के पूर्वज तेरहवीं शताब्दी में अनहिलवाड़ा छोड़कर मध्य भारत में चले आये थे और वहाँ पहुँचकर टंकथोड़ा एवं बनास नदी के समीपवर्ती सम्पूर्ण प्रदेश पर अधिकार कर लिया था। बहुत पहले प्राचीन काल में तक्षक जाति के लोगों ने इस टोड़ा राज्य को कायम किया था और उस जाति के नाम पर इसका नाम तक्षशील अथवा तक्षपुर बहुत दिनो तक रहा और इसके बाद टंक थोड़ा के नाम से प्रसिद्ध हुआ।* अफगानी लिल्ला ने उस पर अधिकार करके सुरतान को वहाँ से निकाल दिया था। इसलिए राव सुरतान मेवाड़ की सीमा पर अरावली पर्वत के नीचे बसे हुये बदनौर में आकर रहने लगा था। राव सुरतान की लड़की ताराबाई बहुत समझदार थी। अपने पिता के भाग्य के इस पतन पर वह वहुत दुःखी रहने लगी। उसने घोड़े पर चढने और बाण चलाने का अभ्यास आरम्भ कर दिया। अफगानी सेना का मुकाबला करने के लिए जब सुरतान की सेना युद्ध के क्षेत्र में आगे बढ़ी तो ताराबाई अपने घोडे पर बैठी हुई और अपने हाथों में धनुप-बाण लिए हुए सेना के साथ-साथ चल रही थी। लेकिन उस युद्ध मे सुरतान की पराजय हुई। इससे कुछ दिनों के बाद राणा रायमल के लड़के जयमल ने ताराबाई की बहुत प्रशंसा सुनी। उसने तारावाई के साथ विवाह करने का प्रस्ताव किया। उस प्रस्ताव को सुनकर ताराबाई ने गम्भीरता के साथ उत्तर दिया : "जो बदनौर का उद्धार करेगा, मैं केवल उसके साथ विवाह करूँगी।" जयमल ने ताराबाई की इस प्रतिज्ञा को सुना। उसने बदनौर का उद्धार करना और अफगानियो को वहाँ से निकाल देना स्वीकार कर लिया। लेकिन बदनौर से अफगानियों को निकालने के पहले ही जयमल ने ताराबाई के साथ अपना व्यवहार आरम्भ कर दिया। उसने निर्लज्जतापूर्वक ऐसे व्यवहार आरम्भ किये जो ताराबाई को और उसके पिता राव सुरतान को किसी प्रकार पसन्द नहीं आये। इसके फलस्वरूप जयमल राव सुरतान के हाथों से मारा गया। जयमल का भाई पृथ्वीराज निर्वासित अवस्था मे उन दिनों मारवाड़ में था और उसने गोडवाडा का उद्धार करके अपने शौर्य का परिचय दिया था। इसलिए उसका पिता अब फिर उसके साथ स्नेह करने लगा था। पृथ्वीराज ने राव सुरतान के द्वारा जयमल के मारे जाने का समाचार सुना। उसने भाई जयमल की प्रतिज्ञा को पूरा करने का निश्चय किया। यहाँ के खण्डहरों में ऐसी बहुत सी चीजे पायी जाती है। जिनसे इस बात का पता चलता है कि यहाँ पर तक्षक जाति के लोग रहा करते थे। इस स्थान के चारों तरफ प्रकृति के सुन्दर दृश्य दिखायी देते हैं। यहाँ पर किसी समय बनास नदी के समीप राजकमल और कुछ दूसरे प्रामाद बने हुये थे। उनके टूटे हुये अशो को देखकर उनकी रमणीकता का अनुभव होता है। - अनुवादक 343