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पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३६५

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कि उसके नगर मे सोलंकी सेना ने प्रवेश किया है और उसके सैनिक नगर के चारों तरफ आग लगा रहे हैं। इन वातों को सुनकर रानी बहुत घवरा उठी और वह इस बात की चिन्ता करने लगी कि इस संकट के समय क्या करना चाहिए। इसके कुछ समय बाद चौहान राजा चण्ड अपनी पुत्रवधू को लेकर अपने लड़के के साथ वापस आ गया। राजा चण्ड ने नगर की जब यह अवस्था देखी और उसे मालूम हुआ कि मेरे बालेचा चले जाने पर सोलंकी सामन्त की सेना ने यहाँ पर आक्रमण किया है तो वह बड़ी तेजी के साथ युद्ध के लिए तैयार हो गया और सोलंकी सामन्त के सामने पहुंचकर उसने ललकारते हुए कहा : "बालेचा से लौटकर मैं आ गया हूँ। अब मैं देखूगा कि यहाँ पर आक्रमण करने के लिए किसने साहस किया है।" यह सुनते ही सोलंकी सामन्त आगे बढ़ा और उसने अभिमान के साथ चिल्लाकर कहा। "चण्ड कहाँ है? मेरा नाम सिंह है। मैं आज चण्ड को खाकर अपनी भूख मिटाऊँगा।" __इस प्रकार कहकर सोलंकी सामन्त अपने हाथ की तलवार को चमकाता हुआ वहाँ पर घूमने लगा। चौहान राजा की सेना युद्ध के लिए तैयार हो चुकी थी और दोनों तरफ से भयानक मारकाट होने लगी, उस मारकाट में राजा चण्ड का और सोलंकी सामन्त का सामना हुआ। दोनो ने एक दूसरे पर आक्रमण किया। इसके कुछ समय बाद राजा चण्ड मारा गया। चौहान नरेश के मारे जाने पर उसकी सेना निर्बल पड़ गयी। उस दिन नगर मे पूरी अशान्ति रही। लेकिन दूसरे दिन ही परिस्थितियों बदल गयीं। पृथ्वीराज ने देसूरी के दुर्ग पर अपनी विजय का झण्डा फहराया। इसके बाद कई दिनों में वहाँ शान्ति कायम हुई। पृथ्वीराज ने अपने निश्चय के अनुसार देसूरी का अधिकार सोलंकी सामन्त को दे दिया और इसके लिए उसने अपने हस्ताक्षर सहित एक पत्र लिखकर दिया। उसमे उसने लिखा : "देसूरी पर विजय के बाद गोडवाड़ा प्रदेश का अधिकार शुद्धगढ़ के सोलंकी सामन्त को दिया गया। अब इस पर सीसोदिया वंश का कोई भी व्यक्ति अधिकार नहीं कर सकता। इसलिए कि इसको मैंने दान मे देकर यह पत्र लिखा है।" ___ इस घटना को बीते हुए बहुत दिन हो चुके हैं। लेकिन उस समय शुद्धगढ़ के सामन्त के वश वालो के साथ चौहान राजा चण्ड के वंश वालों की जो शत्रुता पैदा हुई थी, वह आज तक उसी प्रकार चली आ रही है। इस शत्रुता मे सत्रह पीढ़ियाँ बीत चुकी है। लेकिन उसमें कोई अन्तर नहीं आया। संसार में ऐसा अन्यत्र शायद ही कहीं दिखायी पडे। उदयपुर की पहाड़ी भूमि और उसकी दक्षिणी सीमा की तरफ के प्रदेश की जलवायु स्वास्थ्यकर नहीं है। इसलिए सीसोदिया वंश के जो लोग वहाँ पर रहा करते हैं, उनके स्वास्थ्य के मुकाबले मे चौहान राजपूतों की शारीरिक अवस्था बहुत अच्छी हैं। वहाँ के राजपतों के शारीरिक गठन को वहाँ की दूपित जलवायु ने खराव ही नहीं किया, बल्कि उनको निर्बल भी बना दिया है और उनके शरीर के गोरे रंग को भी नष्ट कर दिया है। वहाँ के सीसोदिया राजपूतो की सतानो पर इसका बहुत दृपित प्रभाव पड़ना चाहिए था लेकिन उससे सुरक्षित रखने के लिए जो कारण हो गया है, वह केवल यह है कि उनके वैवाहिक सम्बन्ध राजस्थान के दूसरे स्थानो और राज्यों में होते रहते हैं। इन सम्बन्धों के कारण उनकी सतानो पर वह दूपित प्रभाव नहीं पडता, जिसका प्रभाव होना अत्यन्त स्वाभाविक था। 359