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पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२४०

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रामचन्द्रिका सटीक । २३६ गुणक्तनि प्रालिंगति नहीं । अपवित्रनि ज्यों छोडति तही २६ शूरनि नाशति ज्यो महि देखि । कंटक ज्यों बहु साधन लेखि ॥ सुधा सोदरा यद्यपि श्राप । सबही ते प्रति कटकप्रताप ३० यद्यपि पुरुषोत्तमकी नारि। तदपि सकल खल जन अनुहारि ॥ हितकारिनकी अतिदेषिणी। श्रहितलोग की अन्वेषिणी ३१ मनमृगको सुबधिककी गीति । विषय बेलिको वारिदरीति ॥ मदपिशाचिकाकीसी अली। मोह नींदकी शय्या भली ३२॥ सच कहे पाणी अर्थ राजासों राज्यश्री युक्त हैं पिशाचाक्रांत पुरुषसम उन्मत्त फिरत है गुणवतनि कहे विद्यादि अनेक गुणको अपवित्रसम त्याग करति है इत्यर्थः " पण्डिते निर्द्धनत्वमित्युक्त माधवानलनाटके" २६ नाशति कहे छोड़ति है शूर औ साधुन को राज्यश्री नहीं प्राप्त होति अथवा शूर औ साधुन को सग्रह राजा नहीं करत इत्यर्थः सुधा जो अमृत है वाकी सोदरा पहिन ३० पुरुषोत्तम विष्णु द्वेषिणी कहे शत्रु है अन्वोषिणी कहे ढूँढ़न हारी है ३१ बधिकसम मनरूपी मृगको बांधिलेति है कहे काबू कस्लेिति है इत्यर्थः औ पारिद कहे मेघसम विषयरूपी बेलिको हरित करति है इत्यर्थः मदरूपी जो पिशाचिकातिनि है वाकी अली कहे सखी है अर्थ सहायक है पावनहारी, इति मोह कहे अज्ञानरूपी जो नींद है ताकी शय्या है जैसे शय्या में नींद बदति है तैसे राज्य में मोइ बढ़त है इत्यर्थः ३२ ॥ आशीनिषदोषनकी दरी। गुण सतपुरुषन कारण छरी॥ कलहंसनको मेघावली। कपटनृत्यकारीकी थली ३३ दोहा वामकामकरिकी किधों कोमलकदलि सुबेख ॥ और धर्म द्विजराज को मनो राहु की रेख ३४ चौपाई | मुखरोगीज्यों मौन रहै। बात धुलाय एक दै कहै | अधुर्वर्ग पहिचान नहीं। मानो सन्निपात है गही ३५॥ हरी कदरा में प्राणीगि सर्वसम अनेक प्रजापीड़नादि दोष जामें वास करत हैं इत्यर्थ भी अनक जे निगदि गुणरूपी सत्युरुप हैं जिनके कारण