[५२ रामचन्द्रिका सटीक। धनगाजत जहां तहां शुभशोभाजगी ७ दोहा ॥ रामचन्द्र सीतासहित शोभत हैं त्यहि ठौर ।। सुबरणमय मणिमय खचित शुभ सुंदर शिरमौर ॥ जो एकही दिशासों चारों घराते प्रावतीं तो एकएक बरातकी अगवानी में घेर होती बाइकी लग्न टरिजाती तासी एकहीवार अगवानी होघे के लिये चार यरातें चारों दिशा है आई सागर सरिस राजाजनक हैं सरिता (सरिस चारों बराते हैं बाँइ. सरिरा अगवानी की चारों चमूडै ५ वारीठेको चारु कहे द्वारपूजा अनुरूप यथोचित पहिराइयो पदते भूपण वस्त्र पहिराइयो जानो ६ घारोठेको चार करि जनवास मदिरको गये इति कथाशेष जन वास मंदिर भावरि करिवेके लिये मंडप कई माइयमें गये सो मंडप कैसी है भाफाशविलासी को प्रोफाशको ऐसी है विलास कौतुक जाफो अर्थ भतिदीर्घ अतिउच है आकाशमें नक्षत्र हैं इहाँ झालरन में लगे प्रभाम- | काशी कहे अतिशोभायुक्त ने जलज मोतिन के गुच्छ हैं तेई नये नवीन नखत है,७ खचित फहे चित्रित षट्पद ॥ बैठे मागध सूत विविध विद्याधर चारण। के- शवदास प्रसिद्ध सिद्ध शुभ अशुभ निधारण ॥ भरद्वाज जावालि अत्रि गौतम' कश्यप मुनि । विश्वामित्र पवित्र चित्रमति वामदेव पुनि ।। सबभांति प्रतिष्ठित निष्ठमति तहँ वसिष्ठ पूजत कलस।शुभशतानद मिलि उच्चरत शाखोचार सवै सरस अनुकूलछद ॥ पावक पूज्यो समिध सुधारी। आहुति दीनी सब सुखकारी ॥दैतव कन्या बहुधन दीन्हो। भावरि पारि जगत यश लीन्हो १० सागताछंद ॥ राजपुत्र- कनिसी छवि छाये राजराज सब डेरहि आये। हीर चीर गज बाजि खुदाये । सुंदरीन बहुमंगल गाये ११ सोरठा । वोसर चौथे याम शतानद मागू दिये ॥ दशरथ नृपके वाम माये सकल विदेह बनि १२ भुजगप्रयातलंद ॥ कहू शोभना दुभी दीह वाजें । कहू भीमभकार कर्नाल साजै ॥ कहू LECTURE TORT