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पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/७२

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रामचन्द्रिका सटीक । गुरु ने विश्वामित्र हैं विनको सुखकारी ऋतु जो यज्ञ है ताको रखवारी करिकै ११॥ दोहा ॥ हरहू होतो दड दै धनुष चढ़ावत कष्ट ॥ देखो महिमा काल की कियो सो नरशिशु नष्ट १२ विजय छंद ॥ बोरौं सबै रघुवंश कुठार कि धारमें वारन वाजि सरत्यहि । बाण कि वायु उड़ाइकैलक्षन लक्ष करौं अरिहा समरत्थहि ॥ रामहि वाम समेत पठे वन कोपके भार में भूजौं भरत्यहि । जो धनु हाथ लियो रघुनाथ तो आजु अनाथ करौं दशरथहि १३॥ १२ सरस्वती उतार्थ से कहे सहित वै कहे निश्चय अर्थ निश्चय करि | रघुवंश के जे कुठार शत्रु हैं सिन्, पारन पानि रथ सहित की कहे | समुद्रादि जलाशय की धार प्रवाहमैं बोरों कंजलमस्मिन्मस्तीति की अर्थ | जामें जल रहे सो की कहाँव वशपदश्लेष है बांसहू को नाम है ताठार | पद को पारन वाजि रथ कहि या जनायो कि जामें उनको चिकन रहै श्री लक्षन कहे लाखन जे रघुशके शत्रु हैं ति, पाणी वायुसों | उड़ाइकै हा कहे हाइ हाइ जो शब्द है ताही में समरत्व लक्ष कहे निशाना करौं अर्थ ऐसी घाणवष्टि करौं जामें केवल हाइ हाइ करे और पराक्रम करिये लायक ना रहै जय रामहि को केवल रामचन्द्रहीसों घाम कहे कुटिलतासमेति हैं अर्थ जे रामही के शत्रु है तिन्हें चनको पटैदेउँ श्री जे भरथहि वाम समेति हैं अर्थ भरतके शत्रु हैं तिहें शोकके भारमें धूमौ औ जो धनुषको रघुनाथ हाथ में लियो कहे उठायो तो आजु दशरथको अनाथ कहे जाको नाथ कोऊ नहीं अर्थ सबको नाथ करों कहे करि मानौ तौ सबके नाथ जे विष्णु हैं तिनहीं के शम्भुधनुष तोरिये की सामर्थ्य है ताते सेई विष्णु रामरूप है दशरथ के पुत्र भये यह निश्वयकरि दशरथ को सर्वोपरि मानों इति भावार्थः १३ ।। सोरठा ॥ राम देखि रधुनाथ स्थते उतरे बेगिदै ।। गहे भरतको हाथ धावत राम विलोकियो १४ परशुराम-दडक।